नरेंद्र मोदी अपने ‘अच्छे दिन आने वाले हैं’ स्लोगन से खुद घबराने लगे हैं. 14 जून को उन्होंने कहा कि अच्छे दिनों से पहले बुरे दिन आएंगे और कुछ अलोकप्रिय फैसले लेने होंगे. आर्थिक अनुशासन के नाम पर उन्होंने लोगों को कड़वी दवा पीने को तैयार रहने को कहा, क्योंकि उन के अनुसार, यह देश बीमार है और पिछली सरकार खजाना खाली कर चुकी है.
आत्मविश्वास लौटाने के लिए उन्होंने जनता से 1-2 साल के लिए सब्र करने की अपील की है और कहा है कि बिना दर्द सहे कुछ मिलता ही नहीं. वे सरकारी खर्च पर लगाम कसने के लिए आमजन को मिलने वाली बहुत सी चीजों पर मिलने वाली सहायता बंद कर देंगे यानी वे महंगी हो जाएंगी. खाद, बीज, अनाज इन में शामिल हैं. सरकार को खर्च पूरा करने के लिए बाजार से कर्ज लेना पड़ेगा, इसलिए ब्याज की दरें भी बढ़ेंगी.
‘हरहर मोदी घरघर मोदी’, ‘अब की बार मोदी सरकार’, ‘अच्छे दिन आएंगे’, ‘भ्रष्टाचार मुक्त मोदी सरकार’ के अपने नारों को नकारते हुए उन्होंने कहा कि केवल उन के गुणगान से स्थिति नहीं बदलेगी. यानी भारतीय जनता पार्टी अब मानने लगी है कि पिछली सरकार के हाथ बंधे थे और देश का बुरा हाल सिर्फ कांगे्रस के कारण नहीं, पूरी सामाजिक व्यवस्था के कारण था.
राम व कृष्ण का हवाला देने वाली, पूजापाठ से चमत्कार करने वाली भाजपा को 30 दिनों की हुकूमत में ही एहसास हो गया है कि देश की हालत के लिए सरकार किस तरह जिम्मेदार है और गांधी परिवार कितना. अगर जो भी बुरा हुआ था वह इटैलियन औरत व उस के शहजादे के कारण हुआ था तो बनारस के गंगा घाट पर अवतरित अवतार से उसी तरह देश में चकाचौंध करने वाली उन्नति हो जानी चाहिए थी जैसी सैकड़ोंहजारों पौराणिक कथाओं में वर्णित है.
मोदी अगर मेहनत कर के कमाई की वकालत कर रहे हैं तो उस पूजापाठ, उन मंत्रों का क्या, उन मंदिरों का क्या जिन के बलबूतों पर चुनाव के दौरान देश का सम्मान लौटाने की बात हो रही थी.
नरेंद्र मोदी जो कह रहे हैं वह गलत नहीं है. बस, वह उन के चुनावी नारों से अलग है जिन के बलबूतों पर उन्होंने चुनाव जीता. देश की जनता असल में सदियों से छली जा रही है क्योंकि वह विश्वास करती रही है कि उसे कुछ नहीं करना. उस ने पूजापाठ कर ली, शनि दोष निकलवा लिया, ब्राह्मणों को दान में गाय, स्वर्ण, अन्न, वस्त्र दे दिए, कल्याण अब अपनेआप हो जाएगा.
देश को सुधारने के लिए पहली जरूरत है कि नरेंद्र मोदी वह भगवा आवरण छोड़ें जिस ने देश को निकम्मा बना रखा है. इस देश की जनता की कर्मठता पर अंधविश्वास, वर्णव्यवस्था, धर्म भारी पड़ रहा है. क्या नरेंद्र मोदी असली कर्मठ समाज के निर्माण का बीड़ा उठा सकते हैं? चुनावी नारों से ऊंचा उठ सकते हैं?