कर्मठता, परिश्रम, उत्साह, साहस प्रकृति में चारों ओर बिखरे हैं. हर जीव या जीवित वस्तु अपने अस्तित्व को बचाने के लिए अद्भुत कर्मठता व साहस दिखाती है. सैकड़ों किस्म की तितलियों के रंग आसपास के माहौल जैसे होते हैं ताकि वे उन में छिप कर शत्रु से बच सकें. पेड़पौधे धूप पाने के लिए टेढ़ेसीधे बढ़ते हैं और पानी व मिनरल पाने के लिए अपनी जड़ों को नीचे और नीचे ले जाते हैं. प्रकृति में जो भी जीवित है वह संघर्ष करता रहता है.

यही मानव के साथ है. भारतीय जनता पार्टी के नेताओं ने 2014 के चुनावों में साबित कर दिया कि एक ऐसी विचारधारा, जिस के अनुयायी जनता के मात्र 10-12 प्रतिशत हैं, पर आधारित होने पर भी वे कर्मठता से, परिश्रम से, एकजुटता से, प्रतिबद्धता से 31 प्रतिशत वोट पा कर जीत सकते हैं.

जब यूनानी, हूण, शाक, फारसी, मुगल, अंगरेज, पुर्तगाली, फ्रांसीसी भारत आए थे, उन की तादाद मुट्ठी भर थी. लेकिन अपनी कर्मठता से, अपनी गहरी सोच से, प्रकृति के गुणों से सीख कर उन्होंने न केवल भारत में पैर जमाए, यहां राज भी किया. यहां के बहुसंख्यक लोग, जिन के पास न साधनों की कमी थी, न हथियारों की, इन लोगों के हाथों शिकस्त खाते रहे क्योंकि वे कर्मठ न थे. वे प्रकृति की दया पर जीना चाहते थे. कांगे्रस ने गांधी के नेतृत्व में उस समय की सक्षम अंगरेज सरकार के सामने कर्मठता की राह अपनाई और बिना हथियारों के ही उन्हें देश से निकल जाने को मजबूर कर दिया. उस के बाद कांगे्रस का रंगरूप बदलने लगा. उस ने ‘जो मिल गया उस पर मौज करो’ की संस्कृति अपना ली. न देश के लिए कुछ करना, न अपने सिद्धांतों के लिए. नतीजा यह हुआ कि 1967 तक वह लड़खड़ाने लगी.

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