रूस का यूक्रेन पर हमला कुछ उसी तरह का है जैसा ज्ञानवापी मसजिद या मथुरा में ङ्क्षहदू कट्टरों का है. एक बेमतलब का मामला जिस से जनता को कुछ मिलनामिलाना नहीं है. लाखों लोग तरहतरह से शिकार होंगे. जैसे मसजिदों के झगड़ों के कारण देश भर का मुसलमान ही नहीं दलित और पिछड़ा भी परेशान है और देश की सरकार को मंहगाई या बेरोगारी नहीं मंदिरमसजिद में ताकत झोंकने पड़ रही है, वैसे ही रूस और यूक्रेन में आम लोग अब कित ........करके हथियार उठा रहे हैं और खाने की पैदावार को नुकसान हो रहा है.

रूस और यूक्रेन बहुत गेहूं और तेल को दूसरे देशों में बेचा करते थे जो लड़ाई और प्रतिबंधों की वजह से बंद हो गया है. ऊपर से भारतपाकिस्तान में भयंकर गर्मी से फसल को भारी नुकसान हो रहा है. एक दिन नरेंद्र मोदी ने बड़ी शान से कहा कि उन का देश दुनिया को खिलाएगा, 2 दिन बाद उन्होंने गेहूं को बाहर भेजने पर रोक लगा दी क्योंकि गेहूं आटे के दाम आसमान को छूने लगे और सरकारी स्टाक आधा रह गया.

भारत में भी किसानों को घेरघार का मसजिदों तक ले जाया जा रहा है कि यहीं मंदिर बनाना है. दिखावे के लिए बड़ी पुलिस बंदोबस्त करी जा रही है. भगवे झंडे लिए जा रहे हैं कमीज पैंट नहीं. लोग अपनी ताकत नारों में लगा रहे हैं, खेतों में नहीं. जो बेरोजगार वे तोडफ़ोड़ की स्किल लिख रहे हैं, कुछ बनाने की नहीं. 500-1000 साल पहले हुए मामलों का बदला आज लिया जा रहा है.

आज यह बदला मुसलमानों से लिया जा रहा है कोई बड़ी बात नहीं कि कल यह उलटा पड़े और उन से लिया जाने लगे जिन्होंने जन्म से नीचे कुल में पैदा हुए है. कहकर सदियों तक बड़ी आबादी के साफ अन्याय किया जो आज भी जारी है. उस से आज के दलित, शूद्र, गरीब को वैसे ही कुछ फायदा नहीं होगा जैसे मसजिद की जगह मंदिर बनने से गेहूं आसमान से नहीं बरसने लगेगा.

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