पटियाला, पंजाब में ‘खालिस्तान मुर्दाबाद’ के नारे लगाने से पैदा हुए झगड़ों पर कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए. ये झगड़े कब किस शक्ल में देश भर में होंगे या हो भी रहे होंगे पर सुॢखयां बन नहीं रहे, कहना कठिन है. इतना जरूर है कि देश की एक बड़ी जनता को माचिस की डिब्बियां खाने की जगह पकड़ा दी गई हैं और उन्हें सिखा दिया गया है कि जब कभी पेट की भूख तो सताए तो इस का इस्तेमाल कर ले और चाहे जैसे कर लें.

राजनीतिक मंचों पर प्रधानमंत्री से ले कर निगम पार्षद और पंचायत मेंबर, टीवी न्यूज चैनल, ट्विटर, फेसबुक, धाॢमक आयोजन, यात्राओं के लिए तैयारियां सभी इन डिब्बियों में तीलियां भर रहे हैं और जनता को कह रहे हैं कि यही तीलियां देश की आस्थिता हैं, सुरक्षा है, एकता हैं, अस्तिता हैं. तीलियों से आग ही लगेगी, खाना नहीं पकेगा क्योंकि खाना तो तब मिले जब बेरोजगारी दूर हो, मंहगाई पर काबू हो. यह आग समाज के विभिन्न वर्गों में लगाने के लिए है. ङ्क्षहदूमुसलिम आग तो सब से ज्यादा लगाई जा रही है.

अब ङ्क्षहदू सिख शुरू हो गर्ई है. ङ्क्षहदू अपर फास्ट लोअर कास्ट आग हर समय जलती रहती है पर उस में लपटें नहीं निकलतीं, सिर्फ धुंआ रहता है, दमघोंटू और जहरीला. देश जनता की ख्याति, विशालता, बहुलता को यह आज नष्ट कर रही है. राजनीतिक रोटियां इस आग पर खूब पक रही हैं. इसी आगे पर धाॢमक पूरियां तली जा रही हैं. मेवे से भरा हलवा तैयार हो रहा है और 56 भोग लग रहे हैं.

पटियाला में जो हुआ वह उन काले दिनों की याद दिलाता है जब ङ्क्षमडरावाला के नेतृत्व में पूरा पंजाब एक छावनी बन गया था और गैर सिख को पंजाब में घुसने तक में डर लगता था. यह वह जमाना था जब दिल्ली और चंडीगढ़ के बीच जो रास्ता पंजाब से गुजरता था उस तक पर लोग न जा कर 20-25 किलोमीटर अतिरिक्त चलने लगे थे कि हरियाणा में हो कर ही चंडीगढ़ पहुंचें.

पंजाब में भारतीय जनता पार्टी और उस की पूर्व समर्थक अकाली दल की बुरी तरह की हार, चंडीगढ़ को ले कर विवाद, प्रधानमंत्री का चुनावों से पहले सुरक्षा को ले कर खेला गया नाटक, कृषि कानूनों के खिलाफ  सिख किसानों की मुखरता सब देशभर में बांटी गई माचिस की डिब्बियों का नतीजा हैं.

अलगावबादी या देशद्रोही वे नहीं हैं जो आज जेलों में बंद है बल्कि वे हैं जिन के कहने पर वे राजनीतिबाजी, छात्र, उदारपंथी, प्रोफेसर, विधारक बंद है या मुकदमों के मारे हैं. ये लोग जो असल में कोई मंदिर, पूजापाठ केंद्र धर्म से जुड़ी संस्था, धर्म से जुड़ा व्यापार, धर्म के नाम पर पैसे देेने वाले मशीन चला रहे हैं, असल में देश के समाज को छिन्नभिन्न कर रहे हैं. अताॢकक बातों को सिरमाथे रख रहे हैं. पढऩा छोड़ कर व्हाट्सएप मैसेजों की लगाई ङ्क्षचगारियों को ज्ञान की रोशनी समझ रहे हैं. देश कल अगर बिखरेगा तो उन के कारण जो नारे के रूप में अफगानिस्तान से लेकर थाईलैंड तक वे अखंड भारत का हल्ला मचा रहे हैं और असल में महाभारत की तरह अपने चचेरे भाइयों से लड़ाई को धर्म युद्ध का नाम देकर, मौत को गले लगा कर सदियों बाद भी उन कहानियों पर अपना विश्वास जता सकते हैं जिस में विभाजन की बात है, निर्माण की कहीं नहीं.

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