नरेंद्र मोदी ने मंत्रियों के बिना मंत्रालयों के सचिवों को बुला कर मंत्रालयों के काम की समीक्षा का काम शुरू कर के प्रारंभ से ही बता दिया है कि वे प्रशासन को चुस्त रखना चाहते हैं और उस पर अपनी पूरी पकड़ भी बनाए रखना चाहते हैं. अब तक विभागों के सचिव अपने मंत्री को जवाब दिया करते थे या प्रमुख सचिव तक अपनी बात पहुंचाते थे. पिछली सरकार ने पेचीदा मामलों के लिए मंत्रियों के समूह गठित कर रखे थे जिन का काम अपरोक्ष रूप से मंत्रियों के काम की जानकारी लेना और गड़बड़ होने पर ब्रेक लगा देना था.

सचिवों से जवाब तलब करना अच्छा है. अब तक अपने विभागों के शहंशाह बने ये सचिव अब सीधे उस प्रधानमंत्री की आंखों में आ गए हैं जिसे जनता ने भारी बहुमत से जिताया है और मंत्री जिस की कृपा पर हैं. देश की दुर्गति के पीछे सचिवों की बढ़ती ताकत रही है जिन्हें केवल अपने हितों से मतलब रहता था. वे लोग आसानी से मंत्री को पटखनी दे सकते थे और अकसर मंत्री उन के सामने गिड़गिड़ाते थे.

सरकार को ढंग से चलाना आज देश की पहली आवश्यकता है. वर्षों से सरकार चल रही थी, ऐसा कोई सुबूत कहीं नहीं है. वह तो धकेली जा रही थी और मंत्री, सचिव व सारी नौकरशाही मजे से जनता के कंधों पर झूल रही थी. सचिवों के नेतृत्व में नौकरशाही दिनबदिन खूंखार, निकम्मी और भ्रष्ट होती जा रही थी. हर सचिव के बारे में 100-200 करोड़ रुपए बना लेने की बातें गलियारों में गूंजती थीं, चाहे वे सच हों या न हों.

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