नरेंद्र मोदी की भारी जीत से देश का एक वर्ग थोड़ा चिंतित है कि कहीं नरेंद्र मोदी देश को किसी कट्टरवादी मोड़ पर न ले जाएं पर शुरू के पहले महीने की गतिविधि से उन्होंने यह संदेश दिया है कि वे सरकार चलाने में गंभीर हैं, भारतीय जनता पार्टी के अपेक्षित एजेंडे में नहीं. नरेंद्र मोदी को जनता से जो समर्थन मिला है वह विकास व अच्छे प्रशासन के नाम पर मिला है, हिंदू संस्कृति की पुनर्स्थापना के नाम पर नहीं.

नरेंद्र मोदी ने सार्क देशों के राष्ट्राध्यक्षों को शपथग्रहण में बुला कर यह संकेत दे दिया है कि उन की सरकार न तो पाकिस्तान से दोदो हाथ कर के अपना वोटबैंक पक्का करना चाहती है और न ही यह चाहती है कि पाकिस्तान भारत के लोगों में धर्म के नाम पर फूट फैलाए. आने वालों में श्रीलंका के राष्ट्रपति महिंदा राजपक्षे भी थे जिन से तमिलनाडु के लोग श्रीलंका में तमिल संहार के लिए खार खाए बैठे हैं पर उन के विरोध की नरेंद्र मोदी ने अनसुनी कर के अपनी स्वतंत्रता का स्पष्ट प्रदर्शन किया है.

प्रधानमंत्री पद है ही ऐसा जिस पर बैठा व्यक्ति अपनी धार्मिक, आर्थिक, संस्कारी, सामाजिक अवधारणाओं को भूल जाता है. मुख्यमंत्री पद पर इतनी जिम्मेदारी नहीं होती पर प्रधानमंत्री के निर्णय दूरगामी प्रभाव दिखा सकते हैं.

इंदिरा गांधी ने 1977 और 1981 के बीच पंजाब में जरनैल सिंह भिंडरावाले को छिपा समर्थन दिया था पर 1981 में फिर प्रधानमंत्री बनने के बाद उन्होंने उसे मरवाया, इनाम नहीं दिया. यह बात दूसरी है कि औपरेशन ब्लू स्टार के कारण वे खुद जान से चली गईं.

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