जिन चुनावों का परिणाम 10 मार्च को आना है उन के बारे में भविष्यवाणी करना ठीक नहीं है पर यह जरूर दिख रहा है कि पंजाब हो या उत्तर प्रदेश या उत्तराखंड या गोवा, भारतीय जनता पार्टी के पांव लडख़ड़ा रहे हैं. उत्तर प्रदेश चुनावों से ठीक पहले अमित शाह धूमधड़ाके से उत्तर प्रदेश पहुंचे और योगी आदित्यनाथ विष्ठ के दरकिनार करते हुए खुद ही प्रचार में और दूसरी पाॢटयों में तोडफ़ोड़ में लग गए पर वहां तो लोग भाजपा उम्मीदवारों को गांवों में घुसने तक नहीं दे रहे.

गांव में पश्चिमी बंगाल की तृणमूत्र कांग्रेस और दिल्ली की आम आदमी पार्टी ने अपनी ब्रांचें खोल कर भाजपा, कांग्रेस और स्थानीय पाॢटयों में खलबली मचाई पर कोई करिश्मा कर पाएंगी ऐसा नहीं लगता. पंजाब में कांग्रेस के पूर्व मुख्यमंत्री अमरींद्र ङ्क्षसह भारतीय जनता पार्टी की गोद में जा बैठे पर जो जना अपने को आज भी सम्राट समझ रहा हो, उस के बस के घरघर जा कर वोट मांगना महज चुनावी नाटक ही लगेगा. उत्तराखंड भी छुलमुल हो रहा है और जिसे कोई पार्टी टिकट नहीं देती वह तुरंत दूसरी पार्टी में पाया जाता है.

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कुल मिला कर किसी पार्टी को अब भरोसा नहीं रह गया है कि 10 मार्च का परिणाम क्या होगा पर यह पक्का है कि भारतीय जनता पार्टी को कई धक्के लगेंगे. भारतीय जनता पार्टी ने जिस तरह से अपना पौराणिकवाद चलाया है वह किसानों और छात्रों से मिले झटकों के बाद भी धीमा नहीं पड़ा है. भारतीय जनता पार्टी की बागडोर उन लोगों के हाथों में है जो सोचते ही नहीं जिन्हें विश्वास है कि उन्हें जन्म से दूसरों के सहारे राज करने का वरदान किया है. सदियों तक विदेशियों के गुलाम रहने पर भी गांवों शहरों में उन का सामाजिक राज बना रहा है और वे उसी को स्वर्ग मानते रहे हैं. 2014 में जीत को तो उन्होंने पौराणिक देवताओं के राज की वापसी मान ली थी और जनता को कहा कि पूजा करो, पाठ करो, तीर्थ जाओ, देश का विकास अपने आप हो जाएगा.

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