यूक्रेन पर रूसी हमले ने पूरे यूरोप, अमेरिका, कनाडा, आस्ट्रेलिया, जापान, दक्षिण कोरिया को बुरी तरह हिला दिया है. रूस अपने टैंकों और रौकेटों की शक्ति का दुरुपयोग जिस तरह कर रहा है, उस ने हिटलर के काले दिनों की याद दिला दी है. ऐसे में समृद्ध देश एकजुट हो कर बिखर रहे दुनिया के और्डर को ठीक करने में लग गए हैं और जो भी रूस का साथ दे रहा है, उसे बिरादरी से बाहर कर रहे हैं.

भारत और चीन के रूस से संबंध पहले से ही अच्छे रहे हैं और विदेशों में बसे भारतीयों ने चाहे मोदी सरकार की वाहवाही अपनेअपने देशों में खूब की, लेकिन अब वे मोदी सरकार के निर्गुर सिद्धांत का बहाना नहीं मान रहे. अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन के डिप्टी नैशनल सिक्योरिटी एडवाइजर दलीप सिंह ने भारतीय मूल के होने के बावजूद भारत आने पर भारत के प्रति अपनी नाराजगी व्यक्त की. ऐसा ही संदेश अब चीन को भी जा चुका है कि वह यूरोप से अपने व्यापार को ग्रांटेड न ले.

भारत और चीन का एकल उत्पादन 18 ट्रिलियन डौलर है जो पश्चिमी देशों के 75 ट्रिलियन डौलर से कहीं कम है. यूरोप और अमेरिका रूसी धमकी का सही जवाब देना चाहते हैं और केवल आणविक युद्ध से बचाने के लिए अपने सैनिक यूक्रेन नहीं भेज रहे. वरना जिस तेजी से समृद्ध देशों ने एक हो कर रूस की घेराबंदी की है और हर देश ने रूस से संबंध रखने वाले किसी भी व्यक्ति या कंपनी का बहिष्कार कर डाला है, उस से साफ है कि भारत और चीन को जल्दी ही अपना रवैया बदलना होगा.

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 साल)
USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD79
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...