हिंदू-मुसलिम विवादों को आज लगातार हिंसक बनाया जा रहा है. हिंदुत्व के नाम पर कहीं भी, बिना किसी पूर्वयोजना के किसी मुसलिम की हत्या की जा सकती है. कट्टर हिंदू दलों ने सोशल मीडिया के माध्यम से हिंदुओं को घरघर संदेश पहुंचा दिया है कि हिंदू धर्म के नाम पर जो चाहे कर लो, कोई कुछ नहीं कहेगा.

भारत के मुसलिम चाहे किसी विदेशी धर्म के अनुयायी हों, वे हैं भारतीय और बहुमत की आस्था से चाहे उन का मतभेद हो, उन्हें इस देश में रहने का पूरा और बराबर का अधिकार वैसा ही है जैसे 3 करोड़ भारतीय मूल के लोगों के दूसरे देशों में रहने का है. धर्म, रंग, जाति, भाषा के नाम पर एक पूरे समुदाय को कठघरे में खड़ा करने का जो प्रयास किया जा रहा है वह कट्टर हिंदुओं को चाहे सुकून दे पर यह उन के खुद के लिए भी खतरनाक है.

हरियाणा के बल्लभगढ़ में 23 जून को ट्रेन के भीतर सीट को ले कर हुए झगड़े को गोमांस ले जाने के आरोप में बदल कर भीड़ द्वारा 19 वर्षीय युवक की हत्या करना बताता है कि हिंदू कट्टरवादी लीडरों का अब अपने समर्थकों पर नियंत्रण नहीं रह गया है. वे धर्म के नाम पर कहीं भी उत्पात मचा सकते हैं.

धर्मभीरुओं की भीड़ मुसलिमों के अल्पमत में होने के कारण उन्हें कभी भी मार सकती है. लेकिन, कट्टरों की यह आदत बाद में अपनों को भी सीधा करने में शुरू हो सकती है. 1960 व 1970 के दशकों में कम्युनिस्टों ने श्रमिक संगठन बना कर मजदूरों को अधिकारों के नाम पर दंगा करने का अवसर दे दिया और नतीजा यह हुआ कि देश के अधिकांश बड़े उद्योग बेमौत मारे गए. आज देश की बदहाली (वित्त मंत्री द्वारा छाती ठोकने के बावजूद) उन जैसे दिनों की तरह है जब लाल सलाम के नाम पर किसी भी उद्योगपति, व्यापारी को परेशान किया जा सकता था.

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