लालू प्रसाद यादव और नीतीश कुमार ने न केवल पटना की गद्दी पर कब्जा किया है, दिल्ली के सिंहासन को हिला भी दिया है. बेहद दंभी बन रहे नरेंद्र मोदी को लोकतंत्र का पाठ पढ़ाने का श्रेय लालू और नीतीश जोड़ी को ही जाएगा, क्योंकि इसी के बाद नरेंद्र मोदी को याद आया कि चाय पर चर्चा के लिए सोनिया गांधी और मनमोहन सिंह को बुलाना भी जरूरी है और उन के मंत्रिमंडल में अनुभवी व सौम्य विदेश मंत्री सुषमा स्वराज भी हैं. लालू और नीतीश ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को भी जता दिया कि अपनी आरती का गंदा धुआं ज्यादा न फैलाओ, क्योंकि धुआं चाहे हवन का हो या रसायन फैक्ट्री का, जहरीला ही होता है.
बिहार में लालू नीतीश की जीत के बाद भारतीय जनता पार्टी को एहसास हो गया है कि देश में हर तरह के लोग हैं. पौराणिक युग के आदेशों की तरह देश परशुरामों, विश्वामित्रों, वशिष्ठों, कृष्णों के ईशारों पर नहीं चल सकता. जिस ने भगवा धारण कर लिया उस के मुंह से निकले शब्द जरूरी नहीं मरहम वाले हों, वे तेजाबी भी हो सकते हैं.
लालू और नीतीश को जयप्रकाश नारायण का सा सम्मान तो नहीं मिल रहा पर बिहार की जनता ने उन्हें भरपूर वोट दे कर देश को जहर से बचा लिया है और हालात में इस तरह सुधार हुआ है कि सम्मान वापसी की जो लंबी लाइन लगी थी वह नतीजों के बाद रातोंरात गायब हो गई. अब उस की जरूरत न रही क्योंकि लालूनीतीश सुनामी ने कट्टरपंथियों को देश की राजनीति की गद्दी से उछाल फेंका है.
ऐसा नहीं है कि यह परिवर्तन हमेशा के लिए है. समाज में क्रियाप्रतिक्रिया तो चलती रहती है और हजारों सालों से समाज पर शासन करने के आदी भगवाई सत्ता पर शासन करने के आए मौके को आसानी से फिसलने देंगे, ऐसा नहीं लगता. अगर जनता होशियार नहीं रही तो भगवाई अंधेरे के दिन फिर लौट सकते हैं.
इसलामी देशों ने इस बात को यानी कट्टरपंथ को नजरअंदाज किया था और आज न केवल पूरा पश्चिमी एशिया आग की लपटों में झुलस रहा है, बल्कि मुसलमान दुनियाभर में अपने स्वधर्मियों के कारण उस अपराध की कीमत चुकाने को मजबूर हो रहे हैं जो उन्होंने किए ही नहीं.
नरेंद्र मोदी की गंगा आरती, राजपथ पर योगासनों, धार्मिक प्रवचनों की तरह के भाषणों की तरह ही पश्चिम एशिया के शासक तेल के पैसे का उपयोग इसलाम के बहाने अपने लोगों पर राज कर शौर्टकट ढूंढ़ते रहे हैं. और लोकतंत्र, नई तार्किक शिक्षा, वैज्ञानिक विचारों को ठुकराते रहे हैं. इस का खमियाजा अब इराक, लीबिया, सीरिया, इजिप्ट, ईरान के साथ सऊदी अरब और कतर, तुर्की आदि को भुगतना पड़ रहा है. इसलाम के साथ इसलामी तेल भी संदेह की दृष्टि से देखा जाने लगा है.
भारतीय आर्थिक प्रगति भगवाई धुएं से बची है तो केवल बिहार के कारण. यदि लालूनीतीश फार्मूला और जगहों में न अपनाया गया तो जहरीला धुआं लौटने में देर न लगेगी.