बढ़ती बेरोजगारी, किसानों की नाराजगी, न्यूनतय मूल्य न दे पाने की गारंटी, गांंवों और कस्बों में बढ़ते अपराधों, अदालतों में देरदार पर रोक न कर पाने, कोविड में हुई मौतों का जवाब न होना. लौक डाउन पर पैदल घर लौटते को मजबूर हुए लाखों मजदूरों की नाराजगी वगैरा पर भारतीय जनता पार्टी की केंद्र या उत्तर प्रदेश व उत्तराखंड सरकारों के पास ढोल पीटने के लिए कुछ नहीं बचा जिस से चुनावी गंगा पार कर सकें. इसलिए उस ने पुराना जिन्न बोतल से निकाला- ङ्क्षहदूमुसलमान वाला.

इस चुनाव में मोदीयोगी और शाह बस एक ही बात दोहरा रहे हैं, मुसलमानों ने यह किया, वह किया और अगर भाजपा न होती तो यह हो जाता वह हो जाता. 7 साल तक राज करने के बाद भी भारतीय जनता पार्टी कभी 1947 की बात करती है, कभी 1984 की कभी 1493 की. मानो इन बातों से नलों में पानी आ जाएगा. बाइक में पैट्रोल भर जाएगा, अनाज के दुगने दाम मिलने लगेंगे, दलितों पर हो रहे अत्याचार बंद हो जाएंगे.

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यह सरकार के निकम्मेपन को छिपाने की अच्छी तरकीब है. आज भी जब गांव में जमीन या मकान के बारे पड़ोसियों या रिश्तेदारों में झगड़ा होता है, पुराने इतिहास की परतें एकदूसरे को जवाब देने में खूब काम मेंं  आती है. बात जमीन की सीमा हो रही हो तो जिस ने जमीन हथियाई वह सवाल उठाने वाले के पुरखों का बयान  करना शुरू देता. असली सवाल छिपा रह जाता और दोनों एकदूसरे के पुरखों या एकदूसरे के पुराने कामों की बखिया उधेडऩे लगते हैं. यही भारतीय जनता पार्टी कर रही है.

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