राजस्थान में स्कूलों में 6200 टीचरों की भरती को लेकर हुई परीक्षा में पेपर लीक होने और पटना में रेलवे भर्ती बोर्ड की 36000 छोटे दर्जे की नौकरियों को लेकर जो हंगामे हुए वे एक तरफ तो बढ़ती बेरोजगारी की ओर ईशारा करते हैं और दूसरी और यह भी साफ करते हैं कि अब इन नौकरियों को पाने का वे इच्छुक काम चाहते है, मौजमस्ती नहीं.

रेलवे में चाहे थोड़ाबहुत भ्रष्टाचार, चोरी, निकम्मापन हो पर आखिर में ग्राहक खड़ा ही होता है जिस ने पैसे दिए होते हैं, जो जवाबदेही तुरंत मांगता है और सेवा में कमी होने पर बुरी तरह लताड़ता है. स्टेशनों पर पैसेजरों का हल्ला आम है और आमतौर पर रेलवे कर्मचारी कोशिश करते हैं कि रेल ढंग से चलें ताकि हल्का न हो.

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यही हाल अब सरकारी स्कूलों का हो गया है जिन के लिए राजस्थान में एमीजिबिलेटी टेस्ट हो रहा था, प्राइमरी और सीनियर प्राइमरी क्लासों को पढ़ाना अब मौजमस्ती नहीं रह गया है क्योंकि दलित और पिछड़े तबकों के जो बच्चे सरकारी स्कूलों में आ रहे हैं अब पढऩे के हक के बारे में जागरूक है. अब मांबाप भी सजग है और टीचर महज गुरू नहीं रह गए हैं. जो पहले चोटीधारी पढ़ाने आते थे वे तो सारे मंदिरों के ज्यादा पैसा देने वाले धंधों में चले गए हैं. अब स्कूलों में पढ़ाना पड़ता है. अच्छा रिजल्ट दिखाना पड़ता है. एक्स्ट्रा इंकम के लिए ट्यूशनें और कोङ्क्षचग के लिए भी स्कूल की क्लास में अपना नाम बनाना पड़ता है. यह एक सेवा हो गई है.

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