जम्मूकश्मीर के मुख्यमंत्री ने पुलिस और सेना पर आतंकवादियों के हमले को ले कर पाक से कहा है कि वह आतंकवाद रोके. नई सरकार की यह पेशकश समझ से परे है. जब देश की लाखों की पुलिस और फौज कश्मीर की रक्षा के लिए तैनात है फिर आतंकवादियों की हिम्मत कैसे हुई कि वे पाकिस्तान से भारत घुस आए और हमला कर डाला. और अगर हमला कर डाला तो फिर पाकिस्तान से गिड़गिड़ाने का क्या लाभ? अगर पाकिस्तान सरकार, सेना या वहां पनप रहे आतंकवादी प्रशिक्षण केंद्र जानबूझ कर कश्मीर में अलगाववाद की आग जलती रहने देना चाहते हैं तो क्या राजनाथ सिंह की आपत्ति और मुफ्ती मोहम्मद सईद की गिड़गिड़ाहट से वे चुप हो जाएंगे?

कश्मीर भारत के गले में फांस तो बना रहेगा, यह मान कर चलना पड़ेगा. जब तक देश का समाज धर्म के नाम पर बंटा रहेगा, कोई वजह नहीं कि मुसलिम बहुल कश्मीर के लोगों में कुछ ऐसे न हों जो आजाद कश्मीर या पाकिस्तान में मिलने के सपने न देखते हों. जब देश के बाकी हिस्सों में मंचों पर भगवाई लोग खुलेआम हिंदू भारत और संतों, शंकराचार्यों के निर्देशों पर चलने वाली सरकारों की बात करते हैं तो कश्मीर कैसे अछूता रह सकता है. वहां के धर्म के अनुसार, कट्टरपंथी अपनी सत्ता बनाए रखने के लिए बेचैनी पैदा करेंगे और स्थानीय या बाहरी आतंकवादी इस का लाभ उठाएंगे ही.

हां, इतना आश्चर्य जरूर है कि आखिर ये कट्टरवादी आतंकी आत्मघात के लिए तैयार युवाओं को भारत में लगातार कैसे भेज पा रहे हैं और 2 दिनों में 2-2 के गुट में उन्होंने भारीभरकम फौजी कैंपों पर हमले ही नहीं किए, घंटों तक फौज को परेशान भी रखा.

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