Indian Economy: भाजपा नेता व देश के वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कितना ही विकसित भारत का ढोल बजा लें, लेकिन ऐसा लगता नहीं कि यह देश गरीब देशों की बिरादरी से कभी उबर पाएगा. अगर आबादी 142 करोड़ से बढ़ कर अगले पांच-सात सालों में 155 करोड़ हो जाए और भारत तीसरे नंबर की विश्व अर्थव्यवस्था बन जाए तो भी आम आदमी गरीब ही रहेगा.

देश में करोड़दोकरोड़ की गाडि़यों की कमी नहीं है. देश में 10-20 नहीं, 50-60 करोड़ रुपए के रिहायशी मकानों की कमी नहीं है. देश में ऐसे रैस्तरांओं की कमी नहीं है जहां 4 जनों का खाना 8-10 रुपए हजार का होता है. सिनेमाहालों में 4 जनों का परिवार जाए और सिर्फ पौपकौर्न खाए तो 2,500 से 3,000 रुपए लग जाते हैं, फिर भी कुछ सीटें भर जाती हैं, यह भी दिख रहा है.

पर ढोल पीटने वाले उन स्लमों को नहीं देख रहे जो मुंबई के 50 मंजिले मकानों के अहाते में बने हुए हैं जहां 4 जनों का एक परिवार पूरा महीना 20-25 हजार रुपए में गुजारा करता है. देश के गांवों में 80 करोड़ लोगों को खाना मुफ्त दिया जा रहा है और यह खाना महज 5 किलो अनाज प्रतिव्यक्ति मिलता है जिस में केंद्र सरकार 5 सालों (2024-28) के लिए प्रोजैक्टिड 11.80 लाख करोड़ रुपए खर्च कर रही है जो करदाताओं के पैसे हैं. इस खर्च में ढुलाई व वितरण का खर्च शामिल है.

सवाल यह है कि क्या तीसरी सब से बड़ी अर्थव्यवस्था का ढोल 142 करोड़ में से 82 करोड़ भूखों के बल पर बजाया जा सकता है? यह देश और दुनिया के सामने नितांत बेईमानी है.

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