गृहयुद्धों में अलकायदा या उस टाइप के इसलामी जेहादी गुट जोरशोर से हमले कर रहे हैं. जैसा किसी भी युद्ध में होता है, सैनिकों को मोटा वेतन मिलता है, लूट मिलती है और औरतें मिलती हैं. इन गृहयुद्धों में बंदूक पकड़ने वालों को भी सब मिल रहा है और उलेमा मौलवियों के अनुसार, उन्हें जन्नत में जगह भी मिलेगी.

उन्हें जन्नत मिलेगी या नहीं, हमारी जन्नत यानी कश्मीर फिर खतरे में है. पिछली कांगे्रस सरकार को तो ये लोग कुछ समझते नहीं थे और कश्मीर के मामले को निरर्थक समझ कर छोड़ रहे थे पर अब कश्मीर, भारतीय जनता पार्टी को परेशान करने का अच्छा बहाना है. अलकायदा ने अब अपने कबीलों को कश्मीर की तरफ कूच करने को कह दिया है. अफगानी कबीलाई सैनिक, जिन्होंने अंगरेजों, रूसियों और अमेरिकियों को भगा दिया है, अब अगर भारत के पीछे पड़ गए तो देश को बेहद तकलीफ होगी. कश्मीर पिछले दिनों भारत के लिए अमनचैन की जगह बन गई थी. कश्मीरी भी नौकरियों के लिए देश के अन्य हिस्सों में जाने की तैयारी में थे. आज पश्चिमी एशिया में हो रहे गृहयुद्ध कश्मीर को दहशत में डाल रहे हैं.

कश्मीर भारत का अंग केवल इसलिए नहीं है कि 1947 में महाराजा हरि सिंह ने संधि पर हस्ताक्षर कर दिए थे बल्कि इसलिए है कि भारत की इज्जत इसी से है. पाकिस्तान के लिए यह मामला केवल धर्म का है. आतंकवादी चाहते हैं कि दक्षिण एशिया मुसलिम और गैरमुसलिम इलाकों में बंट जाए, चाहे 3 की जगह 33 देश बन जाएं और सब एकदूसरे से लड़ते रहें. धर्म का काम असल में शांति लाना नहीं, विवाद खड़े करना है और जो विवाद शिया, सुन्नी, अहमदिया, बहाई पश्चिमी एशिया में खड़े कर रहे हैं, वही कश्मीर के रास्ते वे पूरे भारत पर थोपना चाहते हैं. आने वाले दिन अच्छे होंगे, इस की गारंटी नहीं है. पड़ोस में जलती आग की लपटों से बचना शायद हमारे बस में न हो.

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