भारतीय जनता पार्टी की जीत के पीछे व्यापारियों और उद्योगपतियों का बहुत बड़ा हाथ था जिन्होंने भरपूर प्रचार किया, पैसा दिया, तकनीक दी और माहौल बनाया जिस से जनता को विश्वास हुआ कि नरेंद्र मोदी ही ऐसे व्यक्ति हैं जो तरक्की व कामयाबी के साथ सरकार चला सकते हैं. पर अब यही व्यापारी सरकार के निशाने पर हैं. आलूप्याज के बढ़ते दामों पर रोक लगाने के लिए, सरकार कालाबाजारी के नाम पर व्यापारियों को ही टारगेट बना रही है.
सरकार ने आदेश दिया है कि हर जगह मंडियों में छापे मारे जाएं, वायदा कारोबार बंद किया जाए, एक सीमा से अधिक सब्जियां रखने पर रोक लगाई जाए. ये सारे वे टोटके हैं जो पहले कांगे्रस सरकार अपनाती थी और मांग व पूर्ति के सिद्धांतों को ताक पर रख कर दोष व्यापारियों पर मढ़ा जाता था. इस बार मानसून खराब होने की आशंका है और व्यापारी माल रोकने लगे हैं जिस से खुदरा बाजार में सब्जियां महंगी होने लगी हैं. पर यह तो स्वाभाविक व्यापार का नियम है. जब माल की बहुतायत होती है तो यही व्यापारी अपना माल सस्ते में बेचते हैं और बची सब्जियां सड़कों पर फेंक देते हैं.
उन्हें दोष देने की जगह सरकार को मंडी कानूनों पर ध्यान देना चाहिए जो इन व्यापारियों को एकसाथ बैठने का मौका देते हैं. मंडी कानूनों के अंतर्गत किसानों को एक ही जगह पर अपना माल बेचने को बाध्य किया जाता है. वहां व्यापारियों की मनमानी चलती है. अगर मंडियां न हों तो अनाज व सब्जियों के व्यापारी छितर जाएंगे और उन का एकजुट हो कर जमाखोरी करना कठिन हो जाएगा, आढ़तियों की तानाशाही भी बंद होगी. मंडी अधिकारी ‘आज के शहंशाह’ बन गए हैं. वे अनाज व सब्जियों के सब से बड़े माफिया बन गए हैं. उन के पर काटने जरूरी हैं. पर यही लोग तो भाजपा के घंटोंघडि़यालों की सोच के सब से बड़े समर्थक हैं. जरूरत यह है कि व्यापार धर्म पर नहीं तर्क पर चले. भारतीय जनता पार्टी को केंद्र की सरकार चलाने के पहले महीने में ही पता चल रहा है कि नारे लगाना मंत्र पढ़ने की तरह आसान है, काम कर के उत्पादन करना कठिन.