भाजपा नेता व देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुद को शायद विश्वगुरु साबित करने के लिए रूस और यूक्रेन के बीच सम झौता कराने को 24 अगस्त, 2024 को कीव पहुंच गए. वे वहां राष्ट्रपति व्लोदोमीर जेलेंस्की से मिले. उस स्मारक को देखा जहां रूसी मिसाइल अटैक के कारण अस्पताल में बच्चे मरे थे. वह अटैक तब हुआ था जब वे रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से मास्को में गले मिल रहे थे और फिर शांति की अपीलें कीं मानो वे कोई महात्मा गांधी हों जिन की बातों को दुनिया उन के जीतेजी सुनती थी और आज याद करती है.

व्लोदोमीर जेलेंस्की ने 2 दिनों बाद मोदी पर खुल्लमखुल्ला तंज कसते हुए कहा भी कि जो भारत अपने और चीन के बीच शांति को न ला सका वह दूसरों के बीच शांति कैसे लाएगा?

रूस को लगातार हथियार, अनाज देने वाला भारत और उस से पैट्रोल खरीदने वाला भारत ठीक वैसा ही एकतरफा दूत है जैसे कृष्ण तब कौरवों और पांडवों के बीच में थे. उन का महाभारत के युद्ध में उद्देश्य किसी तरह लड़ाई करवाना था और इसीलिए उन्होंने लड़ाई के मैदान में जंग के बीच अर्जुन को उपदेश दिया जिस में एक तरफ वर्णव्यवस्था थी तो वहीं दूसरी तरफ अपने कामों के फल दूसरों (यानी ब्राह्मणों) को दे देने जैसा था. उन्होंने अर्जुन से कहा कि तू इस युद्ध में उतर कर मार वरना ये तु झे मार डालेंगे. कृष्ण किसी भी तरह से निष्पक्ष बिचौलिए नहीं थे और न ही मोदी आज यूक्रेन व रूस की जंग में निष्पक्ष शांतिदूत कहे जा सकते हैं. यूनाइटेड नेशंस के जितने प्रस्ताव इस युद्ध के बारे में पारित किए गए हैं, उन में भारत ने यूक्रेन का नहीं, रूस का साथ दिया है.

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