सौजन्य: सत्यकथा
रोजाना की तरह 23 दिसंबर, 2021 को भी लुधियाना अदालत अपने नियत समय पर खुली थी. वकीलों और मुवक्किलों का आवागमन बदस्तूर जारी था. हालांकि अदालत परिसर में 13 गेटों में से 7 गेट ही खुले हुए थे और बाकी के 6 गेट पहले की तरह ही बंद थे.
मुख्य गेट पर लगे मेटल डिटेक्टर से ही हो कर सभी को अंदर जाना होता था और वहां सिक्योरिटी भी मुस्तैद थी. यही नहीं, अदालत परिसर के करीब 7 मुख्य पौइंट्स पर सीसीटीवी कैमरे लगे हुए थे, जिन में से 3 चल रहे थे और बाकी 4 कैमरे बंद पड़े थे.
3 सीसीटीवी कैमरों के माध्यम से ही अदालत परिसर में आनेजाने वाले लोगों पर निगरानी रखी जा रही थी. एक खास बात यह थी कि कई दिनों से चले आ रहे वकीलों का आंदोलन भी स्थगित था, इसलिए रोजमर्रा की अपेक्षा भीड़ थोड़ी कम थी.
मुकदमों की फाइलें अदालतों में लग चुकी थीं. न्यायाधीश अपनेअपने कमरों में आसन पर विराजमान हो मुकदमों को अंतिम रूप देने में मशगूल थे. वकीलों से न्यायालय कक्ष भरे पड़े थे. उसी बीच एक जबरदस्त धमाका हुआ. धमाका इतना जोरदार था कि पूरी बिल्डिंग दहल उठी.
धमाके की गूंज सुन कर वहां भगदड़ मच गई थी. यह धमाका अदालत की दूसरी मंजिल स्थित शौचालय में हुआ था. धमाके की वजह से आसपास इमारतों के शीशे चटक गए थे. शौचालय के अंदर की दीवारें तक उड़ गई थीं. यही नहीं, दूसरी मंजिल की दीवारें और छत भरभरा कर नीचे जा गिरी और मलबे में तब्दील हो गई थीं.
यह घटना दोपहर के सवा 12 बजे घटी थी. जैसे ही घटना की सूचना डिवीजन नंबर-5 थाने के इंसपेक्टर बलबीर सिंह को मिली, वह अपनी टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. यही नहीं, दिल दहला देने वाली घटना की सूचना पुलिस कमिश्नर गुरप्रीत सिंह भुल्लर को भी मिल चुकी थी. सूचना मिलते ही वह भी मौके पर पहुंच कर घटना की छानबीन करने में जुट गए थे.
मामले की गंभीरता को देखते हुए चंडीगढ़ से फोरैंसिक टीम और एनएसजी टीम मौके पर पहुंच कर जांच में जुट गई थी. एनआईए की टीम भी दिल्ली से रवाना तुरंत रवाना हो गई थी.
देखते ही देखते अदालत परिसर परिसर पुलिस छावनी में तब्दील हो गया था. राज्य के गृहमंत्री सुखजिंदर सिंह रंधावा और डीजीपी सिद्धार्थ चट्टोपाध्याय मौके पर पहुंच चुके थे.
मलबे को हटाने में पुलिस जुटी हुई थी. दूसरी मंजिल की इमारत गिरने से संदीप कौर व शरणजीत कौर निवासी जमालपुर, मनीष कुमार निवासी वृंदावन रोड और कृष्ण खन्ना बुरी तरह घायल हो गए.
आननफानन में पुलिस ने घायलों को जिला अस्पताल पहुंचाया. चारों में से कृष्ण खन्ना की हालत गंभीर बनी हुई थी. वह मलबे के नीचे बुरी तरह दबे हुए थे और उन के सिर में काफी चोटें आई थीं.
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शौचालय के अंदर जहां धमाका हुआ था, वहां क्षतविक्षत एक लाश पड़ी थी. जहांतहां मांस के लोथड़े खून में सने पड़े थे. मरने वाला कौन था, फिलहाल उस की शिनाख्त नहीं हो सकी थी.
पुलिस अपनी काररवाई में जुटी थी. धमाका जिस तरह से हुआ था, अनुमान यही लगाया जा रहा था कि घटना आतंकी हो सकती है. आरडीएक्स अथवा आईईडी विस्फोट में इस्तेमाल किया गया होगा.
बहरहाल, पुलिस की काररवाई जारी थी. शौचालय के पास बिखरा मांस का लोथड़ा पुलिस ने समेटना शुरू किया तो मौके से एक मोबाइल फोन बरामद हुआ. पुलिस ने वह अपने कब्जे में ले लिया.
जांचपड़ताल आगे बढ़ी तो उसी मलबे में से मृतक का दाहिना हाथ मिला, जिस पर टैटू गुदा था. मृतक की शिनाख्त के लिए टैटू ही एक आखिरी सहारा था. उधर मृतक के पास से बरामद मोबाइल फोन की जांच शुरू कर दी गई.
उस फोन की काल डिटेल्स निकलवाने के लिए सर्विलांस डिपार्टमेंट को भेज दिया गया. इधर कोर्ट कौंप्लेक्स चौकी के इंचार्ज एएसआई सुखपाल सिंह की तहरीर पर डिवीजन नंबर-5 थाने में भादंसं की धारा 302, 307 विस्फोटक अधिनियम और डैमेज औफ पब्लिक प्रौपर्टी सहित 13 धाराओं में मुकदमा दर्ज कर लिया गया.
मुकदमा दर्ज होने के बाद थाना पुलिस, एनएसजी और एनआईए की टीमें जांच में जुटी हुई थीं. 24 घंटे में जांच एजेंसियों की मेहनत ने अपना रंग दिखाया.
घटनास्थल से बरामद मोबाइल फोन और हाथ पर बने टैटू से मृतक की पहचान पंजाब पुलिस के निलंबित हैडकांस्टेबल गगनदीप सिंह निवासी जिला खन्ना, पंजाब के रूप में की गई. घटना से पहले एक घंटे के दरम्यान एक ही नंबर पर उस ने 13 बार काल की थी.
जांच एजेंसियों ने उस नंबर की डिटेल्स निकलवाई तो वह नंबर खन्ना जिले की कमलजीत कौर का निकला. जब उस की और गहराई से छानबीन की गई तो उस की पहचान एसपी (खन्ना) के रीडर कांस्टेबल के रूप में हुई.
अब देर किस बात की थी, पहचान होते ही पुलिस ने एसपी औफिस से कमलजीत कौर को धर दबोचा. यह 24 दिसंबर, 2021 की बात है.
पुलिस ने गिरफ्तार कमलजीत कौर को लुधियाना जांच एजेंसियों को सौंप दिया. जांच एजेंसी एनआईए ने जब अपने तरीके से उस से पूछताछ की तो पहले वह नानुकुर करती रही.
लेकिन जब उस से मनोवैज्ञानिक तरीके से पूछताछ हुई तो उस ने बताया, ‘‘बम ब्लास्ट में मारा गया गगनदीप एसपी खन्ना के यहां तैनात हैडकांस्टेबल रीडर था. उसी वक्त दोनों के बीच परिचय हुआ था. यह परिचय बाद में प्यार में बदल गया. दोनों एकदूसरे ृसे प्यार करते थे. 2 साल पहले गगनदीप नशीले पदार्थ हेरोइन के साथ पकड़ा गया था, तभी से वह बरखास्त चल रहा था और जेल में बंद भी था. इस के आगे मैं कुछ नहीं जानती.’’
अब एक बात शीशे की तरह साफ हो चुकी थी कि मरने वाले का नाम गगनदीप सिंह था और वह पुलिस में हैडकांस्टेबल भी था. लेकिन उस ने जिस तरीके से धमाका करने की कोशिश की थी, वह किसी आतंकी साजिश से कम नहीं था.
सवाल यह था कि उस के पास इतना खतरनाक बम कैसे पहुंचा? इस के पीछे किनकिन लोगों के हाथ हो सकते हैं? बम प्लांट करने की ट्रेनिंग उस ने कहां से ली? ऐसे तमाम ज्वलंत सवाल थे, जिन का जवाब पुलिस और जांच एजेंसियों को ढूंढने थे.
कहते हैं, पुलिस जब अपने पर आ जाती है तो मुर्दों से भी सच उगलवा लेती है. ऐसा ही कुछ यहां भी हुआ. हैडकांस्टेबल से आतंकी बने गगनदीप सिंह की प्रेमिका कमलजीत कौर ने जांच एजेंसियों को जितना जानती थी, राज खोल दिया था.
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यही नहीं, गगनदीप के घर वालों ने उस की लाश की शिनाख्त तो कर ली लेकिन उस पर लगाए जा रहे आतंकी की मुहर से इनकार कर रहे थे, पर जांच एजेंसियों ने जब गगनदीप सिंह के खिलाफ तमाम सबूत दिखाए तो सब की बोलती बंद हो गई और उस जांच के लपेटे में मृतक की पत्नी जसप्रीत कौर और उस का बड़ा भाई प्रीतम सिंह घिर गया.
सबूतों की बिना पर पुलिस ने जसप्रीत कौर और उस के जेठ प्रीतम सिंह को गिरफ्तार कर अदालत में पेश कर जेल भेज दिया. अब तक की जांच से एक और बड़ा खुलासा हो चुका था. इस घातक विस्फोट के पीछे पाकिस्तान में बैठा आईएसआई का सक्रिय सदस्य हरविंदर सिंह उर्फ रिदा और अमृतसर जिले का मादक पदार्थ तसकर रणजीत सिंह उर्फ चीता के खतरनाक दिमाग का काम था.
आतंकी हरविंदर सिंह उर्फ रिदा और तसकर रणजीत सिंह उर्फ चीता का साथ इन का साथी जसविंदर सिंह मुल्तानी ने दिया था. वह सिख फौर जस्टिस का सक्रिय सदस्य था और जर्मनी में रहता था.
पंजाब के रहने वाले जसविंदर सिंह मुल्तानी पर खालिस्तान समर्थक होने के साथसाथ पाकिस्तान में हथियार और ड्रग तस्करी करवाने के भी आरोप हैं.
खैर, हैडकांस्टेबल गगनदीप सिंह इन बड़े आतंकियों के संपर्क में कैसे आया, फिलहाल पुलिस जांच की कहानी रोकते हुए उस की काली कहानी पेश करना जरूरी हो गया है. तो ऐसी है उस की कहानी—
31 वर्षीय गगनदीप सिंह मूलरूप से पंजाब के खन्ना जिले के घंडुआ गांव में अपने परिवार के साथ रहता था. उस के परिवार में पिता अमरजीत सिंह, मां और बड़ा भाई प्रीतम सिंह थे.
बात 1995 से पहले की है. बेहद ईमानदार और कर्मठी किस्म के अमरजीत सिंह पीआरटीसी में सरकारी कर्मचारी थे.
अपने सख्त ईमान के चलते विभाग में वह काफी मशहूर थे और वह विभाग से रिटायर तक हो गए लेकिन उन के चरित्र पर किसी ने अंगुली तक नहीं उठाई थी. यही वजह रही कि तनख्वाह के थोड़े पैसों से घर चलाना मुश्किल हुआ जा रहा था.
हालांकि तब आज की तरह महंगाई नहीं थी, फिर भी अमरजीत सिंह का मध्यमवर्गीय परिवार तंगहाली के आलम से गुजर रहा था. इसी दौरान परिवार में एक घटना घटी.
अमरजीत सिंह का अपने भाई के साथ पैतृक संपत्ति को ले कर विवाद छिड़ गया. सीधेसादे अमरजीत अपना गांव छोड़ कर दोनों बेटों को साथ ले कर बहन के पास नंदी कालोनी, खन्ना आ गए और वहीं रहने लगे. सन 2005 में अमरजीत सिंह बहन का घर छोड़ कर परिवार सहित खन्ना के वार्ड नंबर-2 में किराए के मकान में रहने लगे थे.
परिवार की गरीबी और पैतृक संपत्ति विवाद में पिता का गांवघर छोड़ कर चले जाने की घटना का छोटे बेटे गगनदीप के मन पर गहरा असर हुआ. तब वह 15-16 साल का था.
उसी समय गगनदीप ने कसम खाई कि बड़ा हो कर वह पुलिस में जाएगा और अपने चाचा से बदला लेगा. जिस तरह पिता ने ईमानदारी के नाम पर पैसों के लिए बच्चों को रुलाया था, वैसी ईमानदारी को कफन पहना कर बेईमानी का चोला पहन कर नोटों के बिस्तर पर सोएगा.
उसी दिन से किशोर मन का कसरती बदन वाला गगनदीप पुलिस में भरती होने के लिए कठिन परिश्रम करने में जुट गया. उस की सालों की कड़ी मेहनत और दृढ इच्छा ने उस के सपनों को साकार किया. 2011 में वह पंजाब पुलिस में भरती हुआ.
पुलिस में भरती होते ही उस के सपने उड़ान भरने लगे. पुलिस में भरती हो कर उस का मकसद रुपए कमाना था, जनता की सेवा करना नहीं. अटल इरादों वाला गगनदीप करप्शन की राह पर निकल गया था और जनता के बीच खाकी वरदी का रौब जमा कर उन से रुपए वसूलता था.
हालात यह थे कि जिस घर में खाने के लाले पड़े थे, उस के पुलिस में भरती होने के साल भर बाद ही गाडि़यों की गिनती बढ़ने लगी. लेकिन गगनदीप हराम की अपनी इस कमाई से उतना खुश नहीं था, जितना उसे होना चाहिए. वह जल्द से जल्द बहुत अमीर बनना चाहता था.
इसी उधेड़बुन में वह जुटा रहता था. किस्मत के धनी गगनदीप सिंह की तरक्की राह चूमने लगी. खुराफाती और तिकड़मी दिमाग वाला गगनदीप जानता था कि कैसे किसी को अपनी ओर आकर्षित करना और उसे सीढ़ी बना कर आगे बढ़ना है.
चतुरचालाक गगनदीप अपने मृदुल व्यवहार से डीएसपी का रीडर बन गया. वहां पहुंचते ही उस की वह मंजिल मिल गई, जिस की उसे तलाश थी.
जुर्म के छोटे से ले कर बड़े अपराधियों की जन्मकुंडली औफिस की अलमारियों में जमा होती थी. रीडर तो वह पहले ही बन चुका था.
फाइलों की रीडिंग से उसे पता हो चुका था कि किस एरिया में बदमाशों और नशाखोरों का अड्डा जमा है. उन नशाखोरों पर खाकी वरदी की धौंस जमा कर खुद नशा कारोबारी बन गया था और हेरोइन जैसे खतरनाक नशा पुडि़या बना कर बेचने लगा.
नशे के इस नए कारोबार से गगनदीप के घर में बेशुमार पैसे आने लगे. अब उस ने एसएचओ स्तर के भ्रष्ट पुलिस अधिकारियों को अपने बिजनैस में शामिल किया और उन्हें समयसमय पर पैसे पहुंचाता रहा ताकि उस के गुनाह की दुकान पर किसी की बुरी नजर न लगे और उस के जुर्म की दुनिया बदस्तूर चलती रहे.
हुआ भी कुछ ऐसा ही. पैसे पाने के बाद पुलिस अधिकारियों ने भी अपनी आंखों पर पट्टी बांध ली थी. इस से गगनदीप के हौसले बुलंद होते गए और वह नशे के कारोबार को बढ़ाता गया.
रीडर गगनदीप अपनी ऊंची पहुंच के बल पर आगे बढ़ता गया. कल तक वह डीएसपी का रीडर था, अब एसपी का रीडर बन चुका था. एसपी के औफिस में पहुंचते ही वह और बेखौफ हो गया था.
खैर, इसी औफिस में गगनदीप की मुलाकात कमलजीत कौर से हुई थी. वह भी खन्ना एसपी औफिस में नायब रीडर थी. कमलजीत कौर सुंदर और मृदुभाषी थी. जल्द ही दोनों में परिचय हुआ और आगे चल कर यह परिचय प्यार में बदल गया था.
कमलजीत गगनदीप की चिकनी- चुपड़ी बातों में आ कर उसे दिल दे बैठी. लेकिन उस के स्मार्ट चेहरे के पीछे छिपे शैतानी चेहरे को फिलहाल जान नहीं पाई थी.
7 सालों के भीतर गगनदीप ने खन्ना में अपनी कोठी बना ली थी. यह कोठी अपराध के पैसों से बनाई गई थी. युवावस्था के दिनों से मुफलिसी के जिस दौर से वह गुजरा था, उस की आलीशान कोठी की अलमारियों में महंगी चीजें करीने से सजी रहती थीं. घर में मोटरसाइकिल से ले कर चारपहिया वाहन तक आ गए थे.
एक मामूली हैडकांस्टेबल के पास इतने पैसे कहां से आ रहे थे, यह देख कर आसपड़ोस के लोग हैरान थे. जबकि वे इस की शिकायत उस के बुजुर्ग पिता से करते थे तो उस का बड़ा भाई प्रीतम भाई का पक्ष लेता हुआ पड़ोसियों से भिड़ जाता था. उस के बाद पड़ोसी भी चुप हो जाते थे.
बात 11 अगस्त, 2019 की है. मुखबिरों द्वारा लुधियाना एसटीएफ को इनपुट मिल चुका था कि मोतीनगर थाना इलाके में नशीला पदार्थ हेरोइन डिलीवर होने वाली है. इस सूचना पर एसटीएफ की टीम ने अपना जाल बिछा दिया था और जांच शुरू कर दी थी.
मुखबिर ने दूर से एसटीएफ टीम को 2 युवकों की ओर इशारा कर के बताया कि यही दोनों कुरियर हैं, जिन के पास माल है. और फिर गायब हो गया.
एसटीएफ ने उन दोनों युवकों अमनदीप और विकास को धर दबोचा और उन दोनों की गहन तलाशी ली. उन दोनों के पास से 200-200 ग्राम हेरोइन बरामद हुई. एसटीएफ ने दोनों को गिरफ्तार कर लिया और मोतीनगर थाने ला कर उन से सख्ती से पूछताछ शुरू की.
दिन भर चली पूछताछ के बाद आखिरकार रात में जा कर अमनदीप और विकास दोनों ने कुबूल कर लिया कि हेरोइन उस के बौस ने डिलीवरी करने के लिए दी थी.
फिर उन्होंने जो नाम बताया, पुलिस वह नाम सुन कर चकरा गई. नशे का कारोबारी कोई और नहीं, एसपी रीडर गगनदीप सिंह था. दोनों कुरियर बौय के गिरफ्तार होने और राज से परदा उठ जाने की सूचना उसे मिल गई थी.
सूचना मिलते ही गगनदीप जिले से फरार हो गया. एसटीएफ की टीम गगनदीप सिंह के हरसंभव ठिकानों पर दबिश देती रही, जहांजहां उस के छिपने की संभावना बनी थी. वहांवहां पुलिस ने दबिश दी थी. लेकिन वह पुलिस के हाथ नहीं लगा.
पुलिस ने गगनदीप के बारे में सूचना देने के लिए राज्य के सभी जिलों को सूचित कर दिया था. आखिरकार 5 दिनों बाद एसटीएफ को बड़ी कामयाबी लगी. वह मोहाली जिले में छिपा था. मोहाली एसटीएफ ने एसटीएफ लुधियाना को इस की सूचना दी.
16 अगस्त, 2019 को एसटीएफ टीम ने उसे मोहाली से 400 ग्राम हेरोइन के साथ गिरफ्तार किया और प्रोडक्शन वारंट पर उसे लुधियाना ले आई और पूछताछ के बाद अदालत के सामने पेश कर जेल भेज दिया.
बाद में रिमांड पर ले कर पुलिस ने उस से पूछताछ की तो पता चला कि वरदी की आड़ में वह खुद नशे का कारोबारी बन गया था और कुरियर बौय रख कर कमीशन पर उन से नशा बिकवाता था.
उस के लिंक बड़ेबड़े माफियाओं से हो चुके थे. उस का लिंक पाकिस्तान के आतंकियों, बब्बर खालसा के सदस्यों और खतरनाक आतंकी संगठन सिख फौर जस्टिस से बना हुआ था. इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि गगनदीप कितना खतरनाक हो चुका था.
बहरहाल, पूछताछ के बाद गगनदीप को लुधियाना सेंट्रल जेल के बीकेयू-4 बैरक में रखा गया. जिस बैरक में उसे रखा गया था, उसी बैरक में तस्कर और माफिया रणजीत सिंह उर्फ चीता पहले से बंद था.
कस्टम की टीम ने 29 जुलाई, 2019 को अटारी बौर्डर पर 532 किलोग्राम हेरोइन पकड़ी थी, जिस की अंतरराष्ट्रीय बाजार में 2770 करोड़ कीमत आंकी गई थी. अब तक की यह देश की पहली बड़ी खेप थी, जिसे पकड़ा गया था.
पाकिस्तान सीमापार से यह नशा अमृतसर के एक बडे़ नमक व्यापारी के नमक के कंसाइनमेंट में छिपा कर लाया गया था. यह मामला चंडीगढ़ स्थित एनआईए की अदालत में चल रहा है, जहां रणजीत सिंह उर्फ चीता आरोपी है.
जल्द ही गगनदीप और रणजीत चीता के बीच में गहरी दोस्ती हो गई थी. जेल की सलाखों के पीछे से चीता ने अपने साथियों पाकिस्तान में बैठे आईएसआई के सक्रिय सदस्य हरविंदर सिंह उर्फ रिदा और जर्मनी में रह रहे सिख फौर जस्टिस के खतरनाक आतंकी जसविंदर सिंह मुल्तानी से परिचय कराया था.
माफिया रणजीत सिंह उर्फ चीता ने गगनदीप का पहले ब्रेनवाश किया और उसे समझाया कि उस की पहुंच खाकी से ले कर खादी के बड़ेबड़े नेताओं तक है, चिंता मत कर. जल्दी ही सलाखों से बाहर हो जाएगा. फिर तुझे हम अपने गैंग में ले लेंगे, फिर मौजा ही मौजा होगा.
रणजीत की बात गगनदीप के दिमाग में घर कर गई. उस दिन के बाद वह उस का भक्त हो गया, जो रणजीत कहता था वही वह करता था.
2 साल बाद 16 सितंबर, 2021 को गगनदीप जमानत पर जेल से बाहर आया. कुछ दिन वह शरीफों की तरह शांत बैठा रहा. हाथी के दांत की तरह दिखावे के तौर पर उस ने कपड़े का धंधा शुरू कर लिया था, लेकिन उस के दिमाग में फितूर की बातें अभी भी गूंज रही थीं.
रहरह कर उस के दिमाग में रणजीत की वह बात घूमती थी कि तुम अगर कोर्ट के रिकौर्ड रूम को उड़ा दो, जिस में तुम्हारे मुकदमे की फाइल रखी है तो तुम सदा के लिए बरी हो जाओगे और खुली हवा में सांस लोगे. क्योंकि जब मुकदमे की फाइल ही नष्ट हो जाएगी तो मुकदमा अपने आप ही खत्म हो जाएगा. न रहेगा बांस न बजेगी बांसुरी.
उस दिन से गगनदीप जेल से बाहर आने के लिए फड़फड़ा रहा था, जबकि इस के पीछे रणजीत का खतरनाक मंसूबा छिपा था. वह एक तीर से 2 शिकार करना चाहता था.
उसे तो अपने 2770 करोड़ रुपए के नुकसान का बदला सरकार से लेना था, जिस के लिए सरकार के ही एक बंदे की उसे जरूरत थी, जिसे वह आसानी से मोहरा बना सके. आखिरकार, उसे वह मोहरा गगनदीप के रूप में मिल गया जो उस के नापाक मंसूबों को समझ नहीं सका था.
खैर, गगनदीप के दिमाग में एक ही बात चल रही थी. कोर्ट के रिकौर्ड रूम को नष्ट कर के खुद को मुकदमे से आजादी दिलाना. जेल से बाहर आने के बाद गगनदीप घर से कईकई दिनों तक गायब रहता था. पत्नी और घर वालों के पूछने पर वह कोई उत्तर नहीं देता था और पत्नी के साथ मारपीट कर बैठता था. ज्यादातर वह अपनी प्रेमिका कमलजीत कौर के साथ उस के कमरे पर बिताता था.
घटना से 2 दिन पहले गगनदीप ने खन्ना के आलीशान होटल ‘द डाउनटाउन’ में 24 घंटे के लिए एक कमरा बुक कराया था. उस होटल में प्रेमिका कमलजीत कौर के 4 घंटे बिताने के बाद फिर वह चैकआउट कर गया था.
घटना वाले दिन 23 दिसंबर, 2021 को बिना किसी को बताए गगनदीप घर से सुबह साढ़े 9 बजे अपने हाथ में काले रंग का सूटकेस ले कर निकला तो फिर घर नहीं लौटा. आई तो उस के मौत की खबर.
पुलिस सूत्रों के अनुसार, जो सूटकेस घर से ले कर वह निकला था, उस में घातक बम था. उस का मंसूबा भारी जनहानि पहुंचाना था, लेकिन नियति को कुछ और ही मंजूर था. बम प्लांट करते हुए वह खुद ही शिकार बन गया.
बम प्लांट करते समय वह घबरा गया और भूल गया कि कौन सा कनेक्शन किस वायर के साथ जोड़ना है. गलत तार जुड़ने की वजह से बम फट गया और गगनदीप का चीथड़े उड़ गए.
जिस कोर्ट को उड़ाने की साजिश उस ने रची थी, उसी कोर्ट में 3 फरवरी, 2022 को उस के मुकदमों की तारीख थी.
बहरहाल, पुलिस और एनआईए बम कांड की जांच में जुटी हुई है. कथा लिखे जाने तक पुलिस एसपी खन्ना की रीडर और मृतक की प्रेमिका कमलजीत कौर, रणजीत सिंह उर्फ चीता, ड्रग तस्कर सुखविंदर सिंह, जसविंदर सिंह मुल्तानी उर्फ रिदा को गिरफ्तार कर जेल भेज चुकी थी और इस बात की जांच में जुटी थी कि घातक विस्फोटक आखिरकार गगनदीप तक पहुंचा कैसे.
लेकिन अभी तक पुलिस को इस का जवाब नहीं मिला है. जिस दिन इस राज से परदा उठेगा तो कई चेहरे बेनकाब होंगे, जिस का जनता को बेसब्री से इंतजार है.
गगनदीप के इस कारनामे की जानकारी उस के घर वालों को भी थी क्योंकि उन के खातों में विदेश से पैसे ट्रांसफर किए गए थे. पुलिस के पास इस के पक्के सबूत हैं, लेकिन उन की अभी गिरफ्तारी नहीं हुई थी. द्य
—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित