3 नवंबर, 2016 को जालंधर के जिला एवं सत्र न्यायाधीश श्री राज शेखर की अदालत में कुछ ज्यादा ही गहमागहमी  थी. इस की यह वजह यह थी कि उन की अदालत में करीब 3 साल पहले 23 अगस्त, 2013 को हुए गुरजीत कौर हत्याकांड का फैसला सुनाया जाना था. अपने समय का यह काफी चर्चित मामला था, क्योंकि इस हत्याकांड का अभियुक्त करीब पौने 2 साल की जांच के बाद पकड़ा गया था.

इस बीच थाने में कई थानाप्रभारी आए और गए थे. इस हत्याकांड का कोई चश्मदीद गवाह भी नहीं था. अभियोजन पक्ष ने तकनीकी सहारा ले कर अपने पक्ष को मजबूत किया था. चर्चित मामला होने की वजह से अदालत  कक्ष वकीलों और आम लोगों के अलावा मीडिया वालों से भरा था.

फैसला सुनने के लिए मृतका गुरजीत कौर का पति रंजीत सिंह सेठी और दोनों बेटे भी अदालत कक्ष में मौजूद थे. अभियुक्त नरेश डिंपी को भी पुलिस ने ले आ कर अदालत कक्ष में खड़ा कर दिया था. अब सभी को जज साहब के आने का इंतजार था. चूंकि पिछली तारीख पर बहस हो कर सजा तय हो चुकी थी, इसलिए अब केवल सजा ही सुनाना था. जज साहब ने अभियुक्त नरेश डिंपी को क्या सजा सुनाई, यह जानने से पहले आइए इस पूरे मामले को जान लेते हैं.

मोबाइल रिपेयरिंग का काम करने वाला 18 साल का जगजीत सिंह सेठी उर्फ रमन 23 अगस्त, 2013 की दोपहर डेढ़ बजे जालंधर के वंचितनगर स्थित अपने घर खाना खाने पहुंचा तो घर का मुख्य दरवाजा खुला देख कर हैरान रह गया. मां को आवाज देते हुए वह घर में दाखिल हुआ तो बैडरूम के दरवाजे के बीचोबीच खून से लथपथ पड़ी मां गुरजीत कौर को देख कर वह जोरजोर से रोनेचिल्लाने लगा.

रमन की रोनेचिल्लाने की आवाज सुन कर पड़ोसी आए तो उन्हें घटना के बारे में पता चला. गुरजीत कौर की हलत देख कर सभी सन्न रह गए. रमन ने घटना की सूचना अपने पिता रंजीत सिंह सेठी को दी तो वह भी भाग कर घर आ गए. वह जालंधर स्थित दानामंडी में ऐरो पैंट लिमिटेड में डिस्पैच मैनेजर थे. घर पहुंचते ही उन्होंने घटना की सूचना पुलिस को दे दी थी. तभी उन्हें गुरजीत कौर के कराहने की हल्की सी आवाज सुनाई दी. सभी उसे नजदीक के कपूर अस्पताल ले गए, जहां के डाक्टरों ने उन की हालत देख कर उन्हें सिविल अस्पताल ले जाने को कहा.

सिविल अस्पताल पहुंच कर गुरजीत का इलाज शुरू हुआ, लेकिन उस के शरीर का खून काफी मात्रा में बह चुका था, इसलिए इलाज के दौरान ही उस की मौत हो गई. इतनी देर में थाना डिवीजन नंबर-8 की पुलिस अस्पताल पहुंच चुकी थी. पुलिस ने लाश को कब्जे में ले कर उस का निरीक्षण किया. मृतका की गरदन पर गहरा घाव था, जो शायद किसी तेजधार हथियार का था.

उस के सिर और पेट पर गहरे चोटों के निशानों के अलावा चेहरे और बाजुओं पर खरोंचों के निशान थे. पुलिस ने लाश का पंचनामा तैयार कर उसे पोस्टमार्टम के लिए वहीं अस्पताल की मोर्चरी में रखवा दिया. इस के बाद अपराध संख्या 194/2013 पर हत्या का मामला दर्ज कर जांच शुरू कर दी थी.

पुलिस ने घटनास्थल पर जा कर जांच की. बैडरूम का सामान इस तरह अस्तव्यस्त था, जैसे मृतका और हत्यारे के बीच काफी संघर्ष हुआ था. पुलिस ने घर से क्याक्या गायब है, यह पूछा तो रंजीत सिंह ने बताया कि उन की पत्नी अपने पास काफी पैसे रखती थी, क्योंकि वह ब्याज पर रुपए देती थी. उस के पास कितने रुपए थे, यह वह नहीं बता सकते. लेकिन अलमारी की तलाशी ली गई तो उस में ढाई लाख रुपए मिले. बैडरूम के अलावा सभी कमरे जस के तस थे.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार, गुरजीत कौर की गरदन पर चाकू जैसे किसी हथियार से वार किया गया था. उसी तरह पेट पर भी वार किया गया था. इस के अलावा सिर के पिछले हिस्से पर बिना जख्म की चोट थी. यह चोट किसी भारी चीज की थी. सिर के अगले हिस्से में भी वैसी ही चोट थी. मृतका की मौत अधिक खून बहने की वजह से हुई थी.

मरने से पहले मृतका ने काफी संषर्घ किया था. उस की मुट्ठी में कुछ बाल पाए गए थे. संभवत: वे उसी आदमी के थे, जिस ने उस की हत्या की थी. पुलिस को घटनास्थल से ऐसा कोई सुबूत नहीं मिला था, जिस से हत्यारे तक पहुंचा जा सकता. हत्या के इस मामले में पुलिस कुछ नहीं कर पा रही थी.

पुलिस खुद कुछ नहीं कर पाई तो उस ने मुखबिरों को लगा दिया. किसी मुखबिर ने बताया कि इस मामले में घर के ही किसी आदमी का हाथ हो सकता है. इस के बाद पुलिस को मृतका के बेटे रमन पर संदेह हुआ, क्योंकि वह आवारा किस्म के लोगों के बीच उठताबैठता था. शराब पीने के साथसाथ वह जुआसट्टा भी खेलता था. संदेह के आधार पर पुलिस ने उसे हिरासत में ले लिया.

पुलिस ने रमन को ही नहीं, उस के दोस्तों को भी थाने ला कर सख्ती से पूछताछ की. लेकिन वे सभी बेकसूर पाए गए. पुलिस ने मृतका की मुट्ठी में पाए गए् बालों और रमन तथा उस के दोस्तों के बालों की जांच कराई. मेल न खाने से सभी को छोड़ दिया गया था. इस के बाद पुलिस के पास जांच को आगे बढ़ाने का कोई सबूत नहीं था.

पुलिस अंधेरे में हाथपैर मारती रही. धीरेधीरे पौने 2 साल का समय बीत गया. इस बीच कई थानाप्रभारी आएगए, लेकिन कोई गुरजीत कौर के हत्यारे तक पहुंच नहीं पाए.

रंजीत सिंह सेठी वंचितनगर के अपने मकान में पत्नी गुरजीत कौर और 2 बेटों के साथ रहते थे. उन का छोटा सा परिवार था. वह इतना कमाते थे कि उन्हें किसी प्रकार की कोई परेशानी नहीं थी. बेटे बडे़ हुए तो बड़ा बेटा ट्रांसपोर्ट नगर में इलैक्ट्रिशियन का काम करने लगा और छोटा मोबाइल रिपेयरिंग का.

रंजीत सिंह की पत्नी गुरजीत कौर देखने में दबंग जरूर लगती थीं, लेकिन दिल से वह बड़ी दयालु थीं. जरूरतमंदों की मदद करने में भी वह पीछे नहीं रहती थीं. दबंग वह इसलिए थीं, क्योंकि वह ब्याज पर रुपए उठाती थीं. ब्याज की रकम वसूलने के लिए दबंगई दिखानी ही पड़ती थी.

जनवरी, 2015 में थाना डिवीजन नंबर 8 में थानाप्रभारी के रूप में आए नरेश जोशी की नजर अनसुलझे मामलों में गुरजीत कौर सेठी हत्याकांड की फाइल पर पड़ी तो उन्होंने इसे प्राथमिकता के तौर पर सब से ऊपर रखा. उन्होंने फाइल का अध्ययन किया और घर के हर सदस्य से बारीबारी से पूछताछ की. रिश्तेदारों के अलावा उन्होंने करीबी और मिलने वालों के बारे में विस्तार से पूछताछ कर के उन की एक लिस्ट बनाई और फिर बारीबारी से उन से भी पूछताछ की.

इस पूछताछ में उन की नजर मृतका के धर्मभाई नरेश कुमार डिंपी पर जम गई. हत्या के बाद वह रंजीत के घर कभी नहीं आया था. जबकि उस के पहले धर्मभाई होने के नाते उस का गुरजीत कौर के घर काफी आनाजाना तो था ही, घर में भी काफी दखल था.

बच्चे उसे मामा कहने के साथ उस की काफी इज्जत भी करते थे. वह आटोमोबाइल इलैक्ट्रिशियन का काम करता था. सन 2011 में उस ने सीमा से प्रेमविवाह किया था. उस का एक पैर खराब था, जिस से वह लंगड़ा कर चलती थी. डिंपी और सीमा की शादी में धर्मबहन होने के नाते गुरजीत कौर ने दिल खोल कर खर्च किया था.

नरेश जोशी ने नरेश कुमार डिंपी की तलाश में अपनी पूरी पुलिस टीम और मुखबिरों को लगा दिया था. 2 मार्च, 2015 को मुखबिर की सूचना पर उसे गिरफ्तार कर के उन्होंने गुरजीत कौर हत्याकांड के रहस्य से परदा उठा दिया. पूछताछ में अपना अपराध स्वीकार करते हुए नरेश कुमार डिंपी ने बताया कि गुरजीत कौर ने उस की पत्नी सीमा को अपशब्द कहे थे, जिस से नाराज हो कर उस ने उस की हत्या कर दी थी.

10-11 साल पहले गुरजीत कौर की गाड़ी की लाइट खराब हो गई थी. उसे ठीक कराने के दौरान नरेश ने उस की मुलाकात हुई थी. मोबाइल इलैक्ट्रिशियन होने के नाते नरेश ने ही उस की लाइटें ठीक की थीं. यह मुलाकात जल्दी ही घर तक पहुंच गई थी.

नरेश अकेला था. उस के भाई वगैरह तो थे, लेकिन सब अपनेअपने कामों और परिवारों में मस्त थे. समय के साथ गुरजीत कौर और नरेश के संबंध गहराते गए. रक्षाबंधन पर गुरजीत कौर ने उसे राखी बांध कर अपना धर्मभाई बना लिया था और मरते दम तक उस ने इस रिश्ते को निभाया भी था.

भाई मानने के नाते उस ने समयसमय पर नरेश की आर्थिक मदद भी की थी. सन 2011 में नरेश की मुलाकात सीमा से हुई, जो जल्दी ही प्यार में बदल गई. सीमा खूबसूरत और सभ्य लड़की थी. उस में सिर्फ एक ही कमी थी कि वह लंगड़ा कर चलती थी. नरेश ने सीमा को गुरजीत कौर से मिलवा कर उस से शादी करने की इच्छा व्यक्त की.

 

गुरजीत कौर को भी सीमा पसंद आ गई थी. इसलिए धर्मभाई की खुशी के लिए उस ने सीमा के मातापिता से बात की. उस के मांबाप शादी के लिए तैयार नहीं हुए थे तो नरेश ने गुरजीत कौर की मदद से सीमा से प्रेम विवाह कर लिया था.

शादी के बाद नरेश के घर को गृहस्थी लायक बनाने के लिए गुरजीत कौर ने एक बहन का फर्ज अदा करते हुए नरेश को 25 हजार रुपए दिए थे. नरेश के पास जो भी पैसे थे, घर बसाने में सारे खर्च हो गए थे. उस के पास खर्च के लिए भी पैसे नहीं बचे तो उस ने गुरजीत कौर से 10 हजार रुपए ब्याज पर उधार मांगे.

इस पर गुरजीत कौर ने उसे समझाते हुए कहा, ‘‘देख नरेश, बड़ी बहन होने के नाते मेरा जो फर्ज बनता था, वह मैं ने पूरा कर दिया. अब तुम फिजूलखर्ची बंद कर के कमाओ और पत्नी के साथ आराम से रहो. तुम ब्याज के रुपयों के चक्कर में मत पड़ो, क्योंकि मुझे तुम्हारी कमाई के बारे में पता है. तुम हर महीने मुझे 10 हजार रुपए का ब्याज नहीं दे पाओगे.’’

‘‘दीदी, मुझे रुपए की सख्त जरूरत है. बिना रुपए के मेरी गाड़ी नहीं चल सकती. मैं हर महीने बिना मांगे तुम्हें ब्याज देता रहूंगा. बस तुम मुझे 10 हजार रुपए दे दो, ताकि मैं अपनी गाड़ी चला सकूं.’’

गुरजीत कौर ने नरेश को बहुत समझाया, लेकिन वह नहीं माना. तब गुरजीत कौर ने कहा, ‘‘ठीक है, तुम नहीं मान रहे हो तो मैं तुम्हें रुपए दे दूंगी. लेकिन यह मत सोचना कि ये रुपए बहन के हैं. तुम 10 हजार रुपए का एक हजार रुपए हर महीने ब्याज दे पाओगे.’’

‘‘दीदी, मैं ब्याज के 1 हजार रुपए हर महीने बिना मांगे पहुंचा दूंगा.’’ नरेश कुमार डिंपी ने कहा.

इस के बाद गुरजीत कौर ने उसे 10 हजार रुपए दे दिए. अपने वादे के मुताबिक नरेश हर महीने गुरजीत कौर को ब्याज के एक हजार रुपए देता रहा. उस ने 20 महीने में ब्याज के रूप में गुरजीत कौर को 20 हजार रुपए दे दिए. जबकि मूलधन 10 हजार रुपए जस का तस रहा.

ब्याज भरतेभरते वह परेशान हो गया. लेकिन गुरजीत कौर से उस ने जो वादा किया था, उस के अनुसार वह उस की वजह से कभी कुछ कह नहीं पाया.

दरअसल, नरेश कुमार डिंपी का सोचना था कि धर्मबहन होने के नाते उसे परेशान देख कर गुरजीत कौर खुद ही कह देगी कि अब बस कर भाई, तेरे 10 हजार रुपए पूरे हो गए. लेकिन गुरजीत कौर ने तो उस से पहले ही कह दिया था कि ब्याज के मामले में वह कोई रिश्ता नहीं देखती. करीब 2 साल तक ब्याज देने के बाद नरेश ने ब्याज देना बंद कर दिया.

गुरजीत कौर को यह बात बड़ी नागवार गुजरी. ब्याज की रकम को ले कर दोनों में मनमुटाव हो गया. ब्याज देना तो दूर, नरेश ने गुरजीत के घर आना भी बंद कर दिया. तब गुस्से में एक दिन गुरजीत कौर ब्याज के पैसों के तकाजे के लिए नरेश के घर जा पहुंची. उसे देख कर नरेश और सीमा परेशान हो उठे.

गुरजीत कौर का इस तरह आना उन्हें अच्छा नहीं लगा. शायद इसी वजह से चायपानी को कौन कहे, दोनों ने उसे बैठने तक को नहीं कहा. गुरजीत कौर को पतिपत्नी का यह व्यवहार काफी नगवार गुजरा. उस ने नरेश से अपने ब्याज के रुपयों के बारे में पूछा तो उस ने बड़ी रुखाई से कहा, ‘‘अभी तुम जाओ, कल मैं तुम्हारे रुपए पहुंचा दूंगा.’’

गुरजीत कौर लौट आई. उसे नरेश का व्यवहार काफी बुरा लगा था. अगले दिन दोपहर को नरेश उस के घर आया तो वह घर में अकेली थी. नरेश आ कर सोफे पर बैठ गया. वह कुछ कहता, उस के पहले ही उस के और उस की पत्नी के व्यवहार से नाराज गुरजीत कौर ने कहा, ‘‘उस लंगड़ी की इतनी हिम्मत हो गई कि अपने घर में चायपानी की कौन कहे, उस ने बैठने तक को नहीं कहा.’’

‘‘दीदी, हमारी आपस की बातों में सीमा को मत घसीटो.’’ नरेश ने गुरजीत की बात को बीच में काटते हुए कहा. लेकिन दबंग गुरजीत कौर का पारा तो जैसे सातवें आसमान पर था. उस ने नरेश की बात को अनसुनी करते हुए कहा, ‘‘क्यों न कहूं कुछ उसे. औकात ही क्या है उस लंगड़ी की ’’

गुरजीत कौर के मुंह से बारबार अपनी पत्नी के बारे में अपशब्द सुन कर नरेश को गुस्सा आ गया. उस ने कहा, ‘‘दीदी, तुम कौपी ला कर हिसाब करो, मुझे फालतू की कोई बात नहीं सुननी.’’

गुरजीत कौर ने उठते हुए कहा, ‘‘मुझे भी उस लंगड़ी के बारे में कौन सी बातें करनी हैं ’’

इतना कह कर गुरजीत कौर हिसाब की कौपी लाने बैडरूम की ओर बढ़ी, तभी पत्नी के बारे में गुरजीत कौर द्वारा कहे गए अंतिम शब्दों को सुन कर नरेश को गुस्सा आ गया. उस ने वहीं टेबल पर रखी हथौड़ी उठाई और पीछे से जा कर उस के सिर पर पूरी ताकत से मार दी. गुस्सा और दर्द से गुरजीत कौर तड़प उठी. वह घायल शेरनी की तरह नरेश पर झपट पड़ी.

नरेश भी उसे थप्पड़ और मुक्के मारने लगा. दोनों गुत्थमगुत्था हो गए. गुरजीत कौर के हाथ में बेस बौल का बैट आ गया. वह बैट नरेश के सिर पर मारना चाहती थी, लेकिन नरेश ने बैग छीन कर फेंक दिया और डाइनिंग टेबल पर रखी छुरी उठा कर उस की गरदन पर वार कर दिया.

इस के बाद 2-3 वार उस ने पेट पर किए. इस के बाद उस ने उसे धक्का दे कर गिरा दिया और खुद भाग गया. गुरजीत कौर गंभीर रूप से घायल हो कर फर्श पर पड़ी थी. थोड़ी देर में वह बेहोश हो गई. इसीलिए उस के बेटे रमन और पड़ोसियों ने उसे मरा हुआ समझा था.

नरेश जोशी ने अभियुक्त नरेश का बयान और इकरारनामा दर्ज कर उसे अदालत में पेश कर के 2 दिनों के रिमांड पर लिया. हत्या में प्रयुक्त छुरी और हथौड़ी पहले ही बरामद कर ली गई थी. अन्य काररवाई पूरी कर उसे फिर से अदालत में पेश किया गया, जहां से जेल भेज दिया गया.

नरेश जोशी ने इस मामले की जांच समय से पहले ही पूरी कर के अदालत में आरोप पत्र जमा कर दिया था. गुरजीत कौर की हत्या का यह मुकदमा करीब पौने 2 साल चला. इस मामले का कोई चश्मदीद गवाह था नहीं, सिर्फ तकनीकी सहारा ले कर अभियोजन पक्ष ने अपने पक्ष को मजबूत किया था. उसी के आधार पर सरकारी वकील ने बहस कर के नरेश कुमार डिंपी को हत्यारा साबित किया था.

जज साहब के अदालत में आते ही सन्नाटा पसर गया था. अपनी कुर्सी पर बैठते हुए जज साहब ने एक नजर अदालत कक्ष में मौजूद सभी लोगों पर डाली. उस के बाद गुरजीत कौर सेठी हत्याकांड की फाइल खोल कर बचाव पक्ष के वकील श्री खन्ना की ओर देख कर कहा, ‘‘इस मामले की बहस वगैरह तो पूरी हो ही चुकी है. अब फैसला सुनाना है.’’

चूंकि घटनास्थल से मिली हथौड़ी और चाकू पर मिले फिंगरप्रिंट नरेश के फिंगरप्रिंट से मेल खा गए थे. इस के अलावा मृतका की मुट्ठी में मिले बाल भी नरेश के ही थे. इसलिए अदालत में उसे गुरजीत कौर की हत्या का दोषी मानते हुए सश्रम उम्रकैद की सजा सुनाई.

नरेश ने जो किया था, उसे उस की सजा उम्रकैद के रूप में मिल गई थी, लेकिन अगर वह जरा सा संतोष कर लेता तो आज अपनी पत्नी के साथ आराम से रह रहा होता. उस ने हत्या भी उस की की, जिस के उस के ऊपर तमाम एहसान थे. ऐसे आदमी को हमारे यहां एहसान फरामोश कहते हैं.

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