बिसात से बाहर रखे मोहरे की कोई कीमत नहीं होती, राजनीति में यह बात भाजपा के पितृपुरुष और पितामह के खिताब से नवाजे गए लालकृष्ण आडवाणी को देख सहज याद आ जाती है. वे आडवाणी अब मौजूदा सियासत में कहीं दखल देते नहीं दिखते. आडवाणी एक बार फिर एक किताब में दिखेंगे जिस का

नाम है ‘आडवाणी के साथ 32 साल’. इसे एक नवोदित लेखक विशंभर श्रीवास्तव ने लिखा है और जोर दे कर यह बात कही है कि एक वक्त में लालकृष्ण आडवाणी का प्रधानमंत्री बनना तय था पर उन्होंने अटल बिहारी वाजपेयी को पीएम बनवा डाला. यानी आडवाणी जब खुद को इस अहम जिम्मेदारी के काबिल नहीं समझते थे तो नरेंद्र मोदी का क्या दोष.

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