हम लोग अपने देवर के लिए लड़की देखने होशंगाबाद से बरेली जा रहे थे. हमारे साथ जेठजी के 2 बच्चे, एक चचेरा भाई व हमारी 2 बेटियां थीं. दूरी ज्यादा नहीं थी तो तय किया कि उसी दिन वापस आ जाएंगे. हम लोग जीप से रवाना हुए. लड़की देखने का कार्यक्रम हुआ. खाना खाया और उन के बहुत रोकने के बावजूद शाम को हम चल दिए.

बच्चे तो गाड़ी में बैठते ही सो गए. अचानक बीच जंगल में गाड़ी खराब हो गई थी. दूरदूर तक आबादी नहीं थी. रात हो चुकी थी. क्या करें, कुछ समझ नहीं आ रहा था. तभी पतिदेव का ध्यान गया कि सड़क निर्माण का कार्य ताजा ही था, जरूर आसपास मजदूर व ठेकेदार का निवास होगा. थोड़ी दूर पर एक अस्थायी निवास दिख गया. बातचीत करने पर वहां एक पुराने परिचित निकल आए. उन्होंने सलाह दी कि गाड़ी और ड्राइवर सहित यहीं रुकें. वे सुबह गाड़ी ठीक करवा देंगे. किसी अन्य गाड़ी में लिफ्ट ले कर हम लोग वापस बरेली चले जाएं. यही उचित था. आखिर एक नेताजी बड़ी सी गाड़ी में ड्राइवर के साथ जाते मिल गए. हम सब को उन्होंने बैठा भी लिया. लेकिन ड्राइवर ने बताया गाड़ी की बे्रक ठीक से काम नहीं कर रही. हम सब घबरा गए. अंधेरा, जंगल और गहरी खाई. हम सब गाड़ी रुकवा कर वहीं उतर गए. कई गाडि़यां निकलीं पर एक भी नहीं रुकी. आखिर एक ट्रक रुका, उस ने हम सब को बरेली पहुंचा दिया. रात हम वहीं रुके. सुबह हमारा ड्राइवर गाड़ी ठीक करवा कर ले आया और तब हम किसी तरह अपने घर पहुंच सके.

सुजाता गुप्ता, भोपाल (म.प्र.)

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मैं और मेरी पत्नी त्रिवेणी ऐक्सप्रैस से मिर्जापुर से लखनऊ जा रहे थे. गाड़ी लेट चल रही थी. दिन के 10 बजे गाड़ी रायबरेली पहुंची. रायबरेली स्टेशन पर उतर कर गाड़ी की तरफ पीठ कर के मेरी पत्नी नल पर हाथमुंह धोने लगी. इतने में गाड़ी चल दी. मैं पत्नी की तरफ देख कर चिल्लाया, जल्दी आओ. पत्नी ने दौड़ते हुए गेट के दोनों हैंडिल तो पकड़ लिए लेकिन पायदान पर पैर नहीं रख पा रही थी. पैर में साड़ी फंस गई थी. मैं देख रहा था, पत्नी गाड़ी के नीचे जा रही है. तभी एक व्यक्ति ने मेरी पत्नी को दोनों हाथों से फुरती से पकड़ कर प्लेटफौर्म पर खींच लिया. 2 मिनट बाद गाड़ी रुकी और फिर चल दी. बछरांवा स्टेशन पर पत्नी मेरे डब्बे में आई. मैं अभी तक नौर्मल नहीं हो पाया था. पत्नी ने बताया कि उस व्यक्ति ने गार्ड से गाड़ी रुकवा कर रायबरेली में ही गाड़ी में बिठा दिया था. मुझे अफसोस इस बात का है कि मैं उस व्यक्ति, जो अनजान था, को धन्यवाद तक न दे पाया.

एस पी सिंह, लखनऊ (उ.प्र.)

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