लेखक- राघवेन्द्र रावत

सुधा की बिटिया ने बेटे को जन्म दिया तो मानुषी भी बहुत खुश थी क्यों न हो तीनों बहनों के बच्चों परिवार में तीसरी पीढ़ी का अगुआ जो था और फिर सुधा और मानुषी के बीच प्रेम और स्नेह का बंधन इतना प्रगाढ़ था जो शादी के बाद भी बना हुआ था .दोनों अपनी अपनी दुनिया में खुश थी लेकिन जीवन के सुख दुःख एक दूसरे से साझा कर लेती थीं. मानुषी सुधा से दो साल बड़ी थी ,पिता के शांत हो जाने के बाद वह अब सचमुच बड़ी बहिन की तरह सुधा का ख्याल रखती थी. कोरोना जब सामाजिक ताने बाने को तार- तार कर रहा था तब दोनों बहनें अपने अपने शहर के हालत के बारे में बात करती बल्कि देश दुनिया की चिंता भी उनकी बातों में उभर आती .दोनों कोरोना से बचने के उपाय एक दूसरे से साझा करती. मानुषी का पति वरिष्ठ नागरिक की देहरी छू चूका था और दिल का मरीज होने के नाते उसे उनकी ज्यादा फिक्र रहती थी और फिर खुद भी डायबिटिक थी अतः बहुत सावधानी बरत रही थी.

सुधा तो अब अपने नवासे गोलू की तीमारदारी में लगी रहती. नवजात शिशु  और जच्चा के अपने बहुत काम होते हैं लेकिन वह ख़ुशी की उस नाव पर सवार थी जिसके आगे किसी लहर से परेशानी नहीं अनुभव हो रही थी .उस नन्हे मेहमान ने घर में नई ऊर्जा का संचार कर दिया था परंतु यह डर मन में बना रहता था कि बच्चा और उसकी बिटिया रक्षिता दोनों कोरोना से ग्रसित न हो जाएँ.

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