बात मई महीने की है. मेरी बहू के चाचाजी की मृत्यु हो गई थी. उन की अरथी उठने में दोपहर के 12:30 बज चुके थे. धूप अपने चरम पर थी. चाचाजी के बेटे ज्यों ही पैर में चप्पल डालने के लिए आगे बढ़े, उसी समय एक बुजुर्ग ने उन से कहा, ‘अरे बेटा, यह क्या कर रहे हो, बेटे तो नंगेपैर ही अरथी उठाते हैं.’ हमारे शहर में शववाहन की व्यवस्था नहीं है तथा मुक्तिधाम भी बहुत दूर है. चिलचिलाती धूप में बिना चप्पल के नंगेपैर चलने के कारण चाचाजी के बेटे के पैरों में छाले पड़ गए और तीव्र गरमी के कारण उन्हें बुखार भी हो गया जिस की वजह से उन्हें अस्पतल में भरती रहना पड़ा.

- विद्यादेवी व्यास, रतलाम (म.प्र.)

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पूर्वी उत्तर प्रदेश में रिवाज है कि जब नई दुलहन आती है तो सब से पहले गृहप्रवेश के बाद बहू को रसोई में ले जाते हैं. सारा खाना जो उस के आने के उपलक्ष्य में बनवाया गया होता है उसे बहू से छुआ कर ‘बहुतबहुत’ कहलवाया जाता है. मान्यता है ऐसा कर घर हमेशा भरापूरा रहता है. मेरे एक रिश्तेदार के यहां शादी थी. बरात पास के शहर में गई थी. दूसरे दिन लौटने में शाम हो गई. बहू की प्रारंभिक रस्में करा कर उस की ननद व जेठानियां रसोई में ले गईं. एक तो यात्रा की थकान, दूसरे घूंघट. बहू ने आदेशानुसार खाने में उंगलियां डालना शुरू कर दिया. चूल्हे पर भरी कड़ाही कढ़ी रखी थी. बहू ने जैसे ही कढ़ी में उंगलियां डाल कर ‘बहुतबहुत’ कहना चाहा, मारे जलन के चिल्ला पड़ी. कढ़ी भीतर से बहुत गरम थी. बेचारी दो दिन तक इस अजीबोगरीब रिवाज के कारण उंगलियां पकड़े बैठी रही.

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