लेख ‘खर्चीली तीर्थयात्राएं’ पढ़ कर ऐसा लगा कि व्यक्ति की सोच कितनी संकीर्ण हो गई है कि वह अपने पैसे को केवल अपने ऐशोआराम पर ही लुटाता है. वह प्रकृति के उस सौंदर्य से अनभिज्ञ है जिसे वह कभी भी अपने उस तनावपूर्ण वातावरण के आसपास नहीं प्राप्त कर सकता. लेख में बारबार फुजूलखर्ची शब्द का प्रयोग कर लेखक महोदय यह जताना चाहते हैं कि पर्वतीय स्थलों पर जाना बेकार है. किंतु उन से कोई पूछे कि क्या इस तनावभरी जिंदगी से हट कर कोई ऐसी जगह है जहां उसे कुछ देर प्रकृति की गोद में बैठ कर तनावमुक्त होने का मौका मिल सके? ऐसे में भी क्या वह उस के लिए फुजूलखर्ची है?         

रश्मि, पटना (बिहार)

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