जून (प्रथम) अंक में प्रकाशित लेख ‘खर्चीली तीर्थयात्राएं’ प्रेरणास्पद है. पिछले वर्ष इतनी खौफनाक घटना के बाद भी लोगों का तीर्थ पर जाने का मोह भंग नहीं हुआ. ‘मां का दिल महान’ कहानी पढ़ कर ऐसा प्रतीत हुआ कि बिना प्रलोभन के निस्वार्थ सेवा करने को भी लोग गलत समझ बैठते हैं, गलत मूल्यांकित कर लेते हैं. अर्थयुग होने के कारण अर्थ ही सर्वोपरि है. सभी लेख व स्तंभ प्रेरणास्पद हैं.
कांति पुरवार, झांसी (उ.प्र.)
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