मम्मी के बारे में मेरी अनगिनत यादें हैं. हम सब से दूर हुए मां को 12 वर्ष हो गए, फिर भी ऐसा लगता है जैसे वे हमारे साथ हैं, हमारे जीवन के हर अनुभव में. वे बहुत खुशमिजाज महिला थीं, जहां भी जातीं वहां का माहौल खुशनुमा बन जाता. मेरे पापा, भाई और हम दोनों बहनें ही उन की सारी दुनिया थी. मम्मी को घूमने का बहुत शौक था. घर के सारे काम खुद करने के बाद भी, जहां हम कहते, होटल या बाजार या फिर कोई फिल्म देखने, झट से तैयार हो जातीं. उन के मुंह से हम ने कभी ‘न’ नहीं सुना. मेरी मां भाई से ज्यादा मुझे प्यार करती थीं. मेरी हर बात पूरी करती थीं. उन का कहना था, ‘इसे यहां पर अपनी मरजी से रहने दो, शादी के बाद पता नहीं कैसा घरपरिवार मिले.’ आज मम्मी हमारे बीच नहीं हैं पर उन के आशीर्वाद से हमारी जिंदगी वैसी ही है जैसा सपना उन्होंने हमारे लिए देखा था.

वर्षा चितलांग्या, चेन्नई (तमिलनाडु)

*

मैं अपनी मम्मी की बहुत शुक्रगुजार हूं. वे आज भले ही हमारे बीच नहीं हैं लेकिन उन की हिदायतें, उन की बातें, उन की सीख हमारे बीच है. उन का आशीर्वाद हमारे साथ है. बात उस समय की है जब मेरा बेटा सालभर का था. उस ने चलना शुरू किया था. मैं घर के कामों में व्यस्त थी. बेटा अपनी हरकतों से कभी हंसा रहा था तो कभी मैं परेशान हो रही थी. वह अपनी तरफ मेरा ध्यान आकर्षित करने की कोशिश कर रहा था. धीरेधीरे वह बाहर बरामदे में चला गया. इधर मैं धुले कपड़े बौक्स में रखने लगी. तभी मुझे उस की कुलबुलाहट सुनाई दी. मुझे लगा, वह मुझे बुलाने की कोशिश कर रहा है. लेकिन मैं ने उस की तरफ ध्यान न दे कर काम में ध्यान लगा लिया. उस की आवाजें जारी थीं. तभी मेरे मस्तिषक में मेरी मम्मी की बात कौंधी, ‘बेटा, तुम काम में कितने ही व्यस्त हो लेकिन बच्चों को थोड़ीथोड़ी देर बाद देखते रहो. पता नहीं, वे किस मुसीबत में फंस जाएं.’ यह ध्यान आते ही मैं बाहर दौड़ी तो देखा कि बेटा रेलिंग में सिर फंसाए रो रहा है.

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