मेरे भाई की पोस्टिंग सीआरपीएफ में श्रीनगर में थी. वहां उस ने अपने साथी को कुछ रुपए उधार दिए थे. दोनों ने बातोंबातों में आपस में बताया कि मेरी बहन भिलाई में रहती है और उस के साथी ने बताया कि वहीं उस के मामा रहते हैं. बाद में भाई की कंपनी (बटालियन) का ट्रांसफर दिल्ली हो गया और साथी का रायपुर. आपस में संपर्क टूट गया था. एक दिन उस का वह साथी मेरे घर भिलाई आया और पूरे पैसे वापस कर दिए. मैं आश्चर्यमिश्रित खुशी से भर गई. हम सोचते थे कि वे पैसे अब मिलने वाले नहीं हैं और कहां वह महाशय हमें खोज कर दे कर गए.

इस घटना से हम को यह सबक मिला कि दुनिया में अभी भी अच्छे लोग हैं, इंसानियत जिंदा है और उसी के दम पर दुनिया कायम है.

- पूनम यादव, दुर्ग (छ. ग.)

*

मैं बीएड की पढ़ाई कर रही थी. घर से कालेज काफी दूर था. एक दिन मैं कालेज से घर जा रही थी. पता नहीं कैसे मेरा दुपट्टा रिकशे के पहिए में लिपटता जा रहा था. जब तक मैं कुछ समझती और रिकशे वाले को बताती, तब तक दुपट्टा मेरे गले में फांसी की तरह फंस गया था. मेरी आवाज निकल नहीं पा रही थी. तभी एकाएक सामने से चिल्लाते हुए कपड़े की दुकान के मालिक दौड़ते हुए आए और रिकशे को रोका और मुझे संभाल कर दुकान पर ले गए. पानी पिला कर आश्वस्त किया और तब जाने दिया.

उस दिन लगा कि आज भी लोगों में अच्छाई बाकी है.

- रुचि गुप्ता, झांसी (उ.प्र.)

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