हम लोग हनीमून के लिए शिमला गए थे. वहां पर हमारी मुलाकात एक दूसरे जोड़े से हुई. हम ने साथ में जाखू टैंपल जाने का निश्चय किया. जाखू की चढ़ाई के पहले ही प्रसाद, फूल आदि चीजें मिल रही थीं. हमें बताया गया कि आगे कुछ नहीं मिलेगा. हम लोगों ने वहीं से खाने का सामान खरीद लिया. दूसरा जोड़ा बहुत धीरेधीरे चढ़ रहा था तो मुझे बहुत क्रोध आ रहा था. मैं ने पति से जल्दी चलने को कहा तो उन्होंने कहा, ‘‘अच्छा नहीं लगेगा, उन लोगों को छोड़ कर जाना. खाना मेरे हाथ में था.

मैं अकेली ही जल्दीजल्दी ऊपर पहुंच गई. पर यह क्या? मेरे हाथ में पैकेट देख कर बंदरों की सेना ने मुझ पर आक्रमण कर दिया. मैं घबरा गई और डर के मारे पैकेट फेंक दिए. मुझे खाने की फिक्र हो गई, तभी मैं ने देखा कुछ लोग एक छोटी सी दुकान पर चाय पी रहे थे. मैं ने दुकान वाले से खाने के लिए पूछा तो उस ने कहा, ‘‘नहीं, सिर्फ थोड़ी सी मठरियां हैं. मेरे पास पैसे नहीं थे. मैं ने उस से कहा, ‘‘भैया, मेरे पास पैसे नहीं हैं. मेरे पति अभी आएंगे तो वे पैसे देंगे और हम लोग चाय भी पीएंगे.’’ उस ने बिना नानुकुर किए मुझे मठरियां दे दीं.

मैं ने मठरियों को अपने आंचल में छिपा लिया ताकि किसी को कुछ पता न लगे और बंदरों से भी बच सकें. ऊपर पहुंच कर अकेले मठरियां खाईं. हम ने चाय पी और टीस्टौल वाले को पैसे दे कर उस का धन्यवाद किया.

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