मेरे पति बाजार से हमारे पोते अंकित के लिए छोटी साइकिल ले आए. अंकित साइकिल को देख कर नाच उठा. मैं ने कहा, ‘अब जरा इसे चला कर देखो.’ अंकित ने कहा, ‘नहीं दादी, पहले हमें छोटे दादाजी के यहां जाना होगा. वहां जाऊं, लाइसैंस मिल जाए, बाद में साइकिल चलेगी. पापा भी स्कूटर का लाइसैंस रखते हैं न?’यह सुन कर घर के सभी सदस्य हंसने लगे. 

इंदुमती पंड्या, राजकोट (गुज.)

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मेरा बेटा प्रतीक यूकेजी में पढ़ता था. वह बेहद शरारती व चुलबुला था. खेलने का बेहद शौकीन और पढ़ाई का महत्त्व अभी उस के दिमाग में शायद आया ही नहीं था. मेरी रोजमर्रा की दिनचर्या थी, बैंक से वापस आने पर उसे पास बिठा कर पढ़ाना, उस का होमवर्क करवाना. उस दिन, मेहमानों के वापस जातेजाते रात के 9 बज चुके थे, अगले दिन बेटे की परीक्षा थी. उस समय तक उस ने परीक्षा की कोई तैयारी नहीं की थी. मुझे उसे पढ़ाना था, खाना बनाना था और घर का बिखरा कामकाज भी निबटाना था. लिहाजा, मुझे बहुत चिंता थी. जैसे ही बेटा सामने पड़ा, मेरे मुंह से निकला, ‘आज मैं तुझे जम के पीटूंगी.’ बड़ी हैरानी और भोलेपन से 4 वर्षीय प्रतीक, तुरंत बोला, ‘फ्रिज में जमा के.’ यह सुनते ही सब की हंसी छूट गई.

मंजुला वाधवा, चेन्नई (तमिलनाडु)

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मेरी बेटी शालू सपरिवार मेरे घर आई थी. हंसीमजाक के साथ नाश्ते का दौर चल रहा था. शालू की 3 वर्षीया बेटी अहाना रसगुल्ला लेने की जिद करने लगी. मैं उठी और कटोरी में एक रसगुल्ला रख कर अहाना को पकड़ा दिया. अहाना रसगुल्ला पा कर इधरउधर डोलने लगी. अचानक वह जोर से चिल्लाई, ‘‘मां, सूसू.’’

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