मेरे पति मजाक में अकसर ऐसी बात बोल देते थे जो मु?ो अच्छी नहीं लगती थी. एक दिन मेरी सास को अचानक सीने में तेज दर्द उठा. लगा कि वे अब नहीं बचेंगी. हम सभी घबरा गए. डाक्टर को बुला कर पूरी जांच कराई तो पता चला कि कोई खास बात नहीं है, सिर्फ गैस थी. डाक्टर ने दवा दी और कहा कि 1-2 दिनों में पूरी तरह ठीक हो जाएंगी. उसी दिन हमारा दूध वाला अपने पोते के जन्म की खुशी में ज्यादा दूध दे गया, सो मैं ने खीर बना दी. मेरे पति खीर खाने के बाद बोले, ‘‘मां, देखो, तुम्हारे जाने की खुशी में तुम्हारी बहू ने आज खीर बनाई है.’’

मु?ो उन की यह बात बिलकुल अच्छी नहीं लगी. इस बार मैं भी चुप रहने वाली नहीं थी. मैं भी बोल पड़ी, ‘‘आप तो इतने खुश थे कि मां के जाने के बाद यह बंगला, गाड़ी, जमीन और जायदाद सबकुछ आप के नाम हो जाएगा, इसी खुशी में अपने हिस्से की खीर के साथसाथ मेरे हिस्से की भी खीर मांग कर स्वाद लेले कर खा गए.’’ इतना सुनते ही मेरे पति का मुंह देखने लायक था. इस के बाद दोबारा उन्होंने मजाक नहीं किया.

अंजुला अग्रवाल, मीरजापुर (उ.प्र.)

 

मेरी शादी हुए सिर्फ 6 महीने हुए थे.  भोपाल से बेगमगंज हम लोगों को बस से जाना था. भीड़ बहुत थी. जैसे ही बस आई, ये बोले, ‘‘दौड़ के चढ़ो.’’ मैं दौड़ी और आगे के दरवाजे से अंदर चढ़ गई, ये पिछले दरवाजे से चढ़ पाए. हम दोनों एकदूसरे से बहुत दूर हो गए. तभी कंडक्टर मेरे पास कर बोला, ‘‘कहां तक जाना है? पैसे निकालिए.’’ मैं बोली, ‘‘भैया, बेगमगंज जाना है, मेरे पतिदेव पीछे हैं, वे टिकट ले लेंगे.’’ कंडक्टर दूध का जला था, बोला, ‘‘मैं पीछे कहां ढूंढूंगा, आप पैसे दीजिए, ऐसे ही बोल कर लोग सफर कर लेते हैं. अच्छा ठीक है, नाम बताइए उन का.’’

मैं ने नाम बताया, ‘‘गिरीश वर्मा’’. उस ने आवाज लगानी शुरू की, ‘‘गिरीश वर्मा कौन हैं?’’ उधर से कोई आवाज नहीं आई. दरअसल, मेरे पति खड़ेखड़े सो गए थे. कंडक्टर गुस्से में चिल्ला कर बस के ड्राइवर से बोला, ‘‘रोको भाई, बिना टिकट सवारी है.’’ मैं रोंआसी हो गई. बस एक ?ाटके से रुक गई. जैसे ही बस को ?ाटका लगा इन की नींद टूट गई, अधखुली आंखों से बगल वाले यात्री से पूछा, ‘‘कौन सी जगह आ गई, भाई?’’

वह बोला, ‘‘कोई सी नहीं आई भाई, बिना टिकट सवारी है, उसे उतारा जा रहा है.’’ कुतूहल से ये ?ांक कर देखने लगे तो गुस्से और क्रोध से भरी मैं नजर आई. ये दौड़ कर कंडक्टर के पास आए. सारा मामला पलक ?ापकते सुल?ा गया, फिर तो ये पूरे रास्ते सिर्फ माफी ही मांगते रहे.

आराधना सक्सेना, भोपाल (म.प्र.)

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