कई बार ऐसा अनुभव होता है कि पढ़लिख कर भी व्यक्ति के विचार व्यापक नहीं होते, नजरिया संकीर्ण ही रह जाता है, जबकि ऐसा होना नहीं चाहिए. मैं ने एक बार अपनी एक मैडिकल रिपोर्ट शहर के एक नामी डाक्टर को दिखाई. मेरा मकसद 1-2 डाक्टरों से सलाह लेना मात्र था.

रिपोर्ट पकड़ते ही पहले डाक्टर उस में उस डाक्टर का नाम तेजी से ढूंढ़ने लगे जिस ने टैस्ट के लिए सलाह दी थी. जैसे ही उस ने किसी अन्य का नाम देखा तो वे एकदम नाराज हो गए और बोले, ‘‘यह मेरा काम नहीं है.’’ मतलब जिस ने कराया, वही देखे. मुझे लगा कि मर्ज और रोग के मामले में एक डाक्टर के विचार व्यापक और उदार होना वांछित होता है.

माया रानी श्रीवास्तव

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मेरे घर के सामने एक ब्लौक में 4 फ्लैट हैं. जिन में 4 परिवार रहते हैं. नीचे के फ्लैट में एक बुजुर्ग दंपती रहते हैं. उन के ऊपर रहीम चाचा हैं जिन का अपना कारोबार है. रहीम चाचा की बगल में मनोहरलालजी हैं जो मल्टीनैशनल कंपनी में काम करते हैं. उन के नीचे भोलानाथजी हैं जो सरकारी कर्मचारी हैं.

एक दिन रात को रहीम चाचा के छोटे बेटे ने रोना शुरू किया. वह चुप होने का नाम ही नहीं ले रहा था और अपने पेट को बारबार पकड़ रहा था. मनोहरलालजी की नींद बच्चे के रोने से उखड़ गई. वे जोर से बोले, ‘‘अरे भाई, बच्चे को चुप कराओ, नींद उचट गई तो बड़ी मुश्किल से आएगी.’’

भोलानाथजी भी उठ गए और बड़बड़ाते हुए कहने लगे, ‘‘क्या तमाशा लगा रखा है. लोग रात को भी नहीं सोने देते. एक छोटे से बच्चे को चुप भी नहीं करा सकते.’’ बुजुर्ग माताजी की भी नींद खुल गई. वे हींग की डिब्बी ले कर रहीम चाचा के घर गईं. रहीम चाचा को हींग देती हुई बोलीं, ‘‘इसे पानी में घोल कर बच्चे की नाभि में लगा दो. दर्द ठीक हो जाएगा.’’

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