बात मेरी शादी के 4 दिन बाद की है. हम लोग घूमने गए थे. एक जगह एक सर्किल पर, जहां गांधीजी की मूर्ति बनी हुई थी, उस की मुंडेर पर बैठ गए. उस समय रात के 8 बजे थे. सड़क पर लोग आजा रहे थे. मैं सैंडिल उतार कर मुंडेर पर पैर लटका कर बैठ गई. थोड़ी देर बाद मेरे पति बोले, ‘‘चलो उठो, घर चलें.’’
मैं सैंडिल पहनने लगी, तभी मैं ने देखा कि एक लंबाचौड़ा आदमी कुरता व तहमत पहने हमारी तरफ आ रहा था. वह हम से बोला, ‘‘तुम लोग यहां क्यों बैठे हो?’’ और हमारे ऊपर जोरजोर से चिल्लाने लगा.
मेरे पति ने उस से कहा कि हम अभी फौरन यहां से जा रहे हैं. मगर उस ने चाकू निकाल लिया और मेरे गले पर हाथ मारा. मैं ने सोने का सैट पहन रखा था. इस पर मेरे पति व उस में कहासुनी होने लगी. मेरे पति ने मुझ से कहा, ‘‘तुम भाग जाओ,’’ मैं भागने लगी.
तब वह आदमी चिल्लाया, ‘‘कहां भागेगी. वहां मेरे 2 आदमी और खड़े हैं.’’ मुझे समझ नहीं आ रहा था कि किस दिशा में भागूं. भागतेभागते घबराहट में गिर भी पड़ी. इतने में मेरे पति भी मौका देख कर भाग आए और मुझे उठा कर सही दिशा में ले भागे क्योंकि उन्होंने भी उन 2 आदमियों को देख लिया था. वे तीनों आदमी ट्रक से एकसाथ उतरे थे. उस दिन पति की सूझबूझ से हम बालबाल बचे.
आशा गुप्ता, जयपुर (राजस्थान)

मेरे भांजे की शादी थी. हम 20 लोग शादी में सम्मिलित होने नागपुर गए थे. शादी अच्छी तरह से संपन्न हुई. नागपुर से हम लोग सभी टे्रन से वापस हावड़ा के लिए रवाना हुए. दूसरे दिन सुबह 6 बजे के आसपास ट्रेन में बहुत जोरदार आवाज हुई. लगभग सभी सो रहे लोग हड़बड़ा कर उठे. देखा कि ट्रेन की 3-4 बोगियां पटरी से उतर कर टेढ़ी हो गई हैं.
हम लोग जिस डब्बे में थे वह भी टेढ़ा हो गया था. चारों ओर अफरातफरी मच गई. टे्रन जहां रुकी थी, वह जंगल का इलाका था. धीरेधीरे सभी यात्री उतरे.
गनीमत यह थी कि कोई भी गंभीर रूप से जख्मी नहीं हुआ था. थोड़ी देर में राहत सामग्री ले कर एक वैन पहुंच गई. अपनेअपने सामान के ऊपर बैठे सब लोग अंत्याक्षरी खेलने लगे. हलकीहलकी बारिश शुरू हो गई थी. जंगल में मंगल हो रहा था. करीब 3 घंटे बाद एक दूसरी टे्रन आई. उस में सब यात्री चढ़े. जमशेदपुर में रेलवे की तरफ से सब को गरमागरम खाना दिया गया. जब हम हावड़ा पहुंचे, सब के परिजन स्टेशन पर खड़े थे. सब को सकुशल देख कर रिश्तेदारों ने राहत की सांस ली.
सुमंत मोहंता, कोलकाता (प. बंगाल)

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