मेरे पड़ोसी बहुत अच्छे हैं. उन से हमारे बहुत अच्छे संबंध हैं. मेरी पड़ोसिन बेहद अंधविश्वासी हैं. एक बार मेरे पड़ोसी बीमार पड़ गए, 3 दिनों तक लगातार तेज बुखार आता रहा, जांच में डेंगूमलेरिया आदि से डाक्टर ने इनकार किया. तेज बुखार आने से मेरी पड़ोसिन बेहद घबरा गईं तथा आदतन वे बाबाओं के चक्कर में पड़ गईं. कभी प्रसाद, कभी फूल तो कभी धागा, कभी अभिमंत्रित जल या तावीज आदि उपाय करतीं. एक बाबा ने उन्हें पुडि़या में भभूत देते हुए हिदायत दी कि इसे शरीर के हर अंग में ज्यादा से ज्यादा लगाया जाए.

पड़ोसिन ने सारे शरीर में ज्यादा से ज्यादा भभूत लगाने की कोशिश की. पति नींद से जाग गए, उन्हें भभूत से खुजली सी होने लगी, वे पत्नी पर नाराज हुए तथा अलग तो सोने ही लगे, उन से बातचीत भी बंद कर दी.

एक हफ्ते में उन का बुखार ठीक हो गया किंतु पत्नी से नाराजगी जारी रही. दरअसल, पड़ोसी अंधविश्वासी नहीं थे. दोनों का ‘अबोला’ हमें खटकता था. इसलिए हम पतिपत्नी ने पड़ोसिन को समझाने का प्रण किया और वे मान भी गईं. ऐसे अंधविश्वासों का क्या फायदा जिन से पतिपत्नी के संबंधों पर प्रश्नचिह्न लग जाए.    

संध्या, हैदराबाद (आं.प्र.)

 

पिछले वर्ष मेरे ससुरजी का देहांत हो गया था. बड़ा बेटा होने के कारण मेरे पति ने ही मुखाग्नि दी. मेरे पति और मैं कुलपरंपरा के अनुसार सारी रस्मों को निभाना चाह रहे थे लेकिन सुतका के व्रत में एक शाम का मिष्ठान भोजन मेरे पति के लिए असह्य हो रहा था. खाने की बात तो दूर, मेरे पति मीठा भोजन देखना भी नहीं चाह रहे थे.

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