वसीयत पर बवाल
शिवसेना के संस्थापक बाल ठाकरे के ज्येष्ठ पुत्र जयदेव ठाकरे अपने पिता की वसीयत को ले कर इतने दुखी हुए कि अदालत पहुंच गए यह कहते हुए कि उन के छोटे भाई द्वारा अदालत में पेश वसीयत फर्जी है. जयदेव काफी पहले से अपने पिता का घर छोड़ कर अलग रहने लगे थे. अपनी फिल्म निर्माता पत्नी स्मिता ठाकरे को भी उन्होंने छोड़ दिया था.
बकौल जयदेव, यह वसीयत अंगरेजी में लिखी गई है जिस पर बाल ठाकरे के दस्तखत मराठी में हैं. जो आदमी जिंदगी भर मराठी मानुष के लिए संघर्ष करता रहा वह अपनी वसीयत अंगरेजी में क्यों लिखेगा और जिन दिनों वसीयत पर दस्तखत हुए उन दिनों उन के पिता की हालत दस्तखत करने लायक ही न थी. लगता नहीं कि जयदेव अदालत में जीत पाएंगे. बहरहाल, उद्धव की मुसीबत तो उन्होंने बढ़ा ही दी है और यह भी जता दिया है कि सगे भाइयों के बीच पैतृक संपत्ति संबंधी विवाद ही भाईचारे की हिंदूवादी पहचान है.
जेल के बाद
चारा घोटाले के सजायाफ्ता लालू प्रसाद यादव जमानत पर जेल से बाहर आए और पूरे जोश के साथ सोनिया व राहुल में अंधश्रद्धा जताते हुए अपने दोनों दुश्मनों नीतीश कुमार व नरेंद्र मोदी पर ताबड़तोड़ हमले कर रहे हैं.
कभी बिहार में कांगे्रस को 3 लोकसभा सीटें भी न देने वाले लालू को ज्ञान प्राप्त हो गया है कि अब कांगे्रस ही उन के राष्ट्रीय जनता दल का बेड़ा पार लगा सकती है. समीकरण बड़ा दिलचस्प है जो यह साबित करता है कि दुश्मन का दुश्मन हमेशा दोस्त साबित नहीं होता. थकेहारे पुराने नेताओं और बासी पार्टियों के लिए कांग्रेसी रैन बसेरा खुला हुआ है. रामविलास पासवान भी इस बसेरे में हैं जिस का कुछ तो फायदा कांग्रेस को मिलेगा ही.
पागल ही तो हैं
इसे गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे की कुंठा और भड़ास ही कहा जाएगा कि वे आपा खोते अरविंद केजरीवाल को पागल कह बैठे. दरअसल, शिंदे जैसे देश के तमाम नेता केजरीवाल की लोकप्रियता हजम नहीं कर पा रहे हैं.
केजरीवाल इन माने में जरूर पागल हैं कि दिल्ली के मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के लिए मैट्रो ट्रेन से जाते हैं, कम खर्चे वाले छोटे मंत्रिमंडल से काम चला रहे हैं, कांग्रेसी समर्थन की परवा नहीं कर रहे, स्वास्थ्य की चिंता किए बगैर काम कर रहे हैं. उन्होंने एक झटके में धाकड़ नेत्री शीला दीक्षित को धूल चटा दी. ये खूबियां चूंकि किसी श्ंिदे या दूसरे नेता में नहीं हैं, इसलिए उन जैसे नेता केजरीवाल के खिलाफ बकवास करेंगे ही.
खून और सीना
डायलौग ऐसे थे कि हिंदी फिल्मों के पेशेवर संवादलेखक भी पानी मांगने लगें. संवाद अदायगी ऐसी कि राजकुमार जैसे अभिनेता भी शरमा जाएं. 25 जनवरी को मुलायम सिंह वाराणसी में और नरेंद्र मोदी गोरखपुर में थे और दोनों एकदूसरे को जम कर कोस रहे थे.
मुलायम का कहना भी सच था कि मोदी के हाथ खून से रंगे हैं, मोदी की भी बात ठीक थी कि गुजरात बनाने के लिए 56 इंच का सीना चाहिए और ये बापबेटा यूपी में मेरा पीछा करते रहते हैं. मुलायम के हाथ खून से नहीं रंगे हैं और यूपी को गुजरात नहीं बनने देने की भी उन की बात ठीक है क्योंकि वह तो पहले से ही दंगा प्रधान राज्य है.
रैलियों के इस ड्रामे में साफ यह हुआ कि इस साल हिंदी फिल्में कम व्यवसाय करेंगी, इसलिए समझदार निर्मातानिर्देशकों को अपनी फिल्में लोकसभा चुनाव के बाद रिलीज करनी चाहिए.