जदयू नेता शरद यादव जैसेजैसे बुजुर्ग होते जा रहे हैं वैसेवैसे दोटूक बोलने लगे हैं. इसी मानसिकता की देन उन का यह बयान था कि बेरोजगारी के चलते कांवडि़ए बढ़ रहे हैं, इस पर धर्मप्रेमियों ने देशभर में विरोध प्रदर्शन करते अपने प्रिय रोजगार के बारे में इस सच्ची टिप्पणी को झूठा साबित करने की कोशिश की. दरअसल, कांवडि़ए या दूसरे भक्त बेरोजगारी की नहीं, बल्कि निकम्मेपन की देन हैं. सालभर तीजत्योहारों का सिलसिला चलता रहता है. श्रावण मास के बाद देवी के यानी झांकियों के दिन आ जाते हैं. अब जिन नौजवानों ने मुफ्त की मलाई जीमने की ठान ही ली है, तो कौन माई का लाल उन्हें रोकते हुए मेहनत की कमाई का जायका बता पाएगा.

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