मेरी 5 वर्षीया बेटी दिव्या बड़ी बातूनी और हाजिरजवाब है. एक दिन मेरे पति औफिस से आते हुए 1 किलो गाजर ले आए और शाम को गाजर का हलवा बनाने की फरमाइश की. हलवा बनाते समय दूध तो सूख गया पर चीनी नहीं सूखी. तब मैं ने कहा, ‘क्या करें, हलवा तो बन गया पर चीनी बहुत पानी छोड़ रही है.’ पति के जवाब से पहले ही दिव्या ने तुरंत कहा, ‘तो चीनी को निचोड़ कर हलवे में डालना था.’ उस के जवाब पर हम दोनों खिलखिला कर हंस पड़े.

अनिल कुमार  झा, बूंदी (राज.)

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मेरा 6 साल का बेटा विकास दूसरी कक्षा में पढ़ता था. एक बार उस के पापा बीमार हो गए. एक दिन विकास नामालूम किस तरह घर से निकल कर बाजार में केमिस्ट की दुकान पर पहुंच गया और केमिस्ट को 1 रुपया देते हुए बोला, ‘दवाई दे दो, मेरे पापा बीमार हैं.’ दुकानदार उसे पहचान गया, चूंकि वह 2-4 बार अपने पापा के साथ दुकान पर गया था. दुकानदार ने उसे हाजमोला की एक गोली दे दी. उस ने विकास को अपने नौकर के साथ घर तक पहुंचा दिया. आज भी वह बात याद कर के मेरा मन भर आता है.

आशा भटनागर, कल्यान (महा.)

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जब मेरी छोटी बेटी विदिशा नर्सरी में थी तो मैं ने एक बार टिफिन में उसे खजूर दिए थे. थोड़ी दूर पर बैठे उस के सहपाठी को सम झ नहीं आ रहा था कि मेरी बेटी कौन सा, फल लाई है. उस ने कहा, ‘‘मु झे पता है, तुम इमली खा रही हो न?’’ मेरी बेटी ने ‘हां’ में सिर हिला दिया. घर पर आ कर सारा वृत्तांत सुनाया तो मैं ने उस से पूछा, ‘‘तुम ने सच क्यों नहीं बताया?’’

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