कंजंप्शन और एक्सपेंशन योजनाओं को देखते हुए ऑइल प्रॉडक्ट्स के नेट एक्सपोर्टर भारत के पास अगले 15 सालों में शायद कोई सरप्लस कपैसिटी ना हो. देश की सबसे बड़ी रिफाइनरी कंपनी इंडियन ऑइल कॉर्पोरेशन के चीफ ऑफ रिफाइनरीज ने यह बात कही है. कंपनी के डायरेक्टर (रिफाइनरीज) संजीव सिंह ने बताया, 'हम पहले से ही बहुत ज्यादा सरप्लस में नहीं हैं. 15 सालों में सभी योजनाबद्ध कदमों के बावजूद देश शायद डेफिसिट में रहे. लेकिन, यह चिंता की बात नहीं है क्योंकि हम इंपोर्ट कर सकते हैं.'

भारत की सालाना रिफाइनरी कपैसिटी 23 करोड़ टन है. सिंह ने कहा कि मौजूदा इकाइयों के एक्सपेंशन योजना के मुताबिक, यह 2030 तक 30 करोड़ टन पर पहुंच जाएगी. इसके अलावा, सरकार वेस्ट कोस्ट पर 6 करोड़ टन की एक नई रिफाइनरी बनाने की संभावनाएं तलाश रही है. इसके बनने के बाद डिमांड-सप्लाई की स्थिति में बड़ा बदलाव आएगा. पिछले दो साल में देश से पेट्रोलियम प्रॉडक्ट्स का नेट एक्सपोर्ट घटा है. यह गुजरे फिस्कल में 3.23 करोड़ टन था, जो इससे एक साल पहले 4.26 करोड़ टन था.

रिन्यूएबल एनर्जी और इलेक्ट्रिक कारों के ऑइल और गैस की डिमांड पर संभावित असर का जिक्र करते हुए सिंह ने कहा, '2030 तक कुछ भी बड़े तौर पर बदलने नहीं जा रहा है. तेल और गैस खपत के 2040 तक बढ़ने के आसार हैं.' उन्होंने हालांकि कहा, 'अगर टेक्नॉलजी में रैडिकल बदलाव होते हैं और हमारी खपत घटती है तो डिमांड नीचे आ जाएगी.' सिंह ने कहा, 'क्रूड मार्केट बहुत बड़ा है, लेकिन प्रॉडक्ट्स केवल कुछ कंपनियों के पास ही हैं.'

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