लेखिका - सरिता सिंह
मैं आज की नारी हूं
हां, आज की नारी
मैं
तुम्हारी भूख मिटाने की खातिर
सिर्फ देह भर नहीं हूं
जिसे तुम
रौंद कर ही पुरुष बन सको
और न ही सिर्फ वस्तु हूं
जिसे तुम
इस्तेमाल करो
और कूड़ेदान में फेंक कर ही
मर्द बन सको
जैसे तुम मेरे लिए
सिर्फ देह भर नहीं हो
वैसे ही मैं भी
देह के अलावा
और भी बहुतकुछ हो सकती हूं
बेटी, पत्नी, बहू, भाभी
आइटम गर्लफ्रैंड से आगे भी
बहुत से रिश्ते हैं
जिन में तुम
मुझे फिट देखना चाहते हो
लेकिन मैं इन
रिश्तों से अलग भी तो
एक्जिस्ट कर सकती हूं
शायद मेरा यह
एक्जिस्टेंस तुम्हें
बरदाश्त न हो
लेकिन मैं अब
तुम्हारी सोच के दायरे से
कहीं बाहर भी
एक्जिस्ट करती हूं
जी हां,
अब मैं वो नहीं हूं
जिसे तुम ने बनाया है
अब मैं वो हूं
जिसे मैं ने खुद से
क्रिएट किया है
मैं आज की नारी हूं
हां,
आज की नारी
इसलिए
अब तुम्हारे नियमों की
आदत नहीं मुझे
तुम्हारी मर्यादाओं की
जरूरत नहीं मुझे
अब मुझे
तुम्हारे घिसेपिटे संस्कारों से
जकड़न सी होने लगी है
तुम्हारे झूठे आदर्शों से
घुटन सी होने लगी है
अपनी गुलामी की दास्तां
मुझे खुद से पढ़ लेने दो
मेरी आजादी के मायने
मुझे खुद से गढ़ लेने दो
मैं बीवी नहीं बनना चाहती
न जी
बिलकुल नहीं
मुझे पटरानी बनाने की
जहमत भी अब न उठाओ
मेरी खुशियों की कीमत भी
अब तुम न चुकाओ
न मैं तुम्हारे लिए खास बनूं
न तुम
मेरे लिए आम बनो
न मैं तुम्हारे लिए
सीता बनूं
न तुम मेरे लिए राम बनो
बस, अब रहने दो
बहुत हो चुका
मुझे खोलने दो
खुद से मेरी खिड़कियां
अपनी बंद खिड़कियों के लिए
अब मैं तुम्हें नहीं कोसूंगी
न जी
बिलकुल नहीं
मुझे तोड़ने दो खुद से
मेरी बेड़ियां
मैं अपनी इन बेड़ियों के लिए
अब तुम्हें दोष नहीं दूंगी
न जी
बिलकुल नहीं
मुझे एहसास मत कराओ कि तुम
मेरी बेड़ियों के गुनहगार नहीं थे
मुझे मत बताओ कि तुम
मेरी खिड़कियों के पहरेदार नहीं थे
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