आज हर ओर फर्जीवाड़े का मकड़जाल फैला हुआ है. फर्जी कंपनियों द्वारा चलाई गई बेशुमार पौंजी स्कीमों व धन जमा योजनाओं के जरिए हजारों करोड़ रुपयों की हेराफेरी किए जाने के कांड आम हो चले हैं. लाखों की संख्या में निवेशक इन की गिरफ्त में फंस कर अपनी गाढ़ी कमाई की रकम गंवा बैठे हैं. बावजूद इस के, पौंजी स्कीमों का कारोबार फलताफूलता जा रहा है. पौंजी स्कीम का नामकरण चार्ल्स पौंजी नामक व्यक्ति के नाम पर पड़ा. वह इटैलियन था, जिस ने वर्ष 1920 में अमेरिका में तहलका मचा दिया था. उस ने लोगों को पोस्टल कूपन के नाम पर धोखा दिया था. कथित तौर पर चार्ल्स डिकेंस की 1844 में प्रकाशित ‘मार्टिन चजिलविट’ व 1857 में प्रकाशित ‘लिटिल डोरिट’ जैसे उपन्यासों में वर्णित स्कीमों से उत्प्रेरित हो कर उस ने उन स्कीमों को हकीकत में अंजाम दे डाला. अंतर्राष्ट्रीय डाक कूपनों की योजना चलाई. जम कर पैसा बटोरा. थोड़ाबहुत तो शुरुआती निवेशकों को बांट दिया और जो बचा, सब खुद ले उड़ा.

पौंजी स्कीम से तात्पर्य है आमतौर पर निवेश से अधिक रिटर्न की पेशकश के जरिए नए निवेशकों को लुभाने की कवायदों से उन के ख्वाबों का तानाबाना बुनना या यों कहें कि बेईमानी भरी  योजनाओं में बहुत ऊंचे लाभ का लालच देते हुए लोगों से पैसा जमा कराना. शुरू में तो वैध काम शुरू होता है, क्योंकि प्रारंभिक स्थिति ऊंचे रिटर्न को बनाए रखने के लिए नए निवेशकों से पैसों के बढ़ते प्रवाह की आवश्यकता रहती है. आश्चर्य की बात है कि पौंजी स्कीम को चलाने वालों द्वारा स्वयं का उस में कोई पैसा नहीं लगाया जाता अपितु वे निवेशकों  द्वारा जमा कराई रकम का ही अन्य को रिटर्न देने में उपयोग करते रहते हैं. बाद में नए जमाकर्ताओं से प्राप्त राशि से ज्यादा चुकाने पर योजना अकसर गड़बड़ा जाती है और सपनों का किला ध्वस्त होने लगता है. पैसों के अभाव में योजना डगमगाने लगती है. मामला चौपट होने से वह स्कीम पौंजी योजना बन जाती है. देखा जाए तो लोग इन योजनाओं में फंसते हैं. इस का सब से बड़ा कारण यह भी है कि योजनाकर्ता निवेशकों को घर बैठे अपनी सेवाएं मुफ्त सुलभ कराते हैं, व्यक्तिगत संपर्क बनाए रखते हैं. इस तरह से उन का तालमेल कायम रहता है. दूसरी तरफ आलम यह है कि बैंकों में जाओ तो कागजी खानापूर्ति के अलावा लाइनों में लग कर पैसा जमा कराना पड़ता है. इस में काफी श्रम व वक्त लग जाता है.

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