खेती किसी भी मुल्क की अर्थव्यवस्था की रीढ़ होती है और खेती के लिए सब से जरूरी है उम्दा मिट्टी. अगर मिट्टी ही खराब हो जाए तो खेती चौपट हो जाती है. मिट्टी खराब होने की वजह होती है, उस में जरूरी तत्त्वों की कमी होना. कुछ ऐसा ही गड़बड़ हाल पश्चिमी उत्तर प्रदेश की उपजाऊ मिट्टी का हो रहा है.
पिछले दिनों सामने आई रिपोर्ट में यह खुलासा हुआ है. भूमि परीक्षण प्रयोगशाला में मिट्टी के नमूनों की जांच के बाद यह सच्चाई सामने आई है. जांच की रिपोर्ट के मुताबिक जैविक खाद, पोटाश व फास्फोरस के कम इस्तेमाल की वजह से वेस्टउत्तर प्रदेश की मिट्टी तबाह हो रही है. भूमि परीक्षण प्रयोगशाला में गुजरे साल के दौरान मिट्टी के 5500 नमूनों की जांच की गई थी और मौजूदा साल में अब तक 2035 मिट्टी के नमूनों की जांच की गई?है. इन परीक्षणों में जीवांश कार्बन न्यूनतम आया है, जो कि मध्यम होना चाहिए.
जीवांश कार्बन का आशय है मिट्टी में जीवों का जीवित रहना. ये जीव मिट्टी में नाइट्रोजन की कमी को दूर करते हैं. दरअसल नाइट्रोजन की कमी होने से मिट्टी चिपक जाती है, नतीजतन पानी पौधों की जड़ों तक नहीं पहुंच पाता है. इन जांचों में फास्फोरस की मात्रा भी बेहद कम पाई गई है. फास्फोरस की कमी से पौधों की बढ़वार रुक जाती है. इसी तरह पश्चिमी उत्तर प्रदेश की मिट्टी में पहले पोटाश काफी मात्रा में मौजूद था, मगर इन जांचों में यह मध्यम मात्रा में मिट्टी में पाया गया है.
यह हकीकत खेती से जुड़े तमाम लोगों को मालूम है कि नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटाश खेती के खास पोषक तत्त्व हैं. इन के बगैर कोई भी फसल सही तरीके से नहीं पनप पाती, लिहाजा मिट्टी में इन की कमी हो जाना खेती के लिहाज से बहुत बुरा होता है. इन की कमी से खेत की उत्पादन कूवत घट जाती है.