बौलीवुड ने काफी तरक्की कर ली है. बौलीवुड की कमर्शियल फिल्में भारत के अलावा पाकिस्तान, दुबई, सउदी अरब सहित कुछ देशों के सिनेमाघरों में प्रदर्शित होने लगी है. मगर अब तक का इतिहास गवाह है कि बेल्जियम के सिनेमाघरो में आज तक एक भी भारतीय फिल्म प्रदर्शित नहीं हो पायी. मगर अब इस रिकार्ड को तोड़ने जा रही है गत वर्ष तीन राष्ट्रीय पुरस्कार हासिल करने वाले फिल्मकार प्रवीण मोरछले की नई फिल्म ‘‘विडो आफ साइलेंस’’.

मजेदार बात यह है कि अपनी पिछली फिल्म ‘‘वौकिंग विथ द विंड’’ के लिए 2018 में तीन राष्ट्रीय पुरस्कार जीत चुके फिल्मकार प्रवीण मोरछले अपनी कश्मीर की ‘‘हाफ विडो’’ पर बनी नई विचारोत्तेजक फिल्म ‘‘विडो आफ साइलेंस’’ को भारत के सिनेमाघरो में अब तक प्रदर्शित नही कर पाए हैं. वह खुद नहीं जानते कि उनकी यह फिल्म भारतीय सिनेमा घरों में पहुंच पाएगी या नही.  फिल्म ‘‘विडो आफ साइलेंस’’ ने छह माह के अंदर पांच इंटरनेशनल अवार्ड जीते हैं. जबकि 11 इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में इंटरनेशनल कंपटीशन का हिस्सा रही. इजराइल,कोरिया, औस्ट्रेलिया, अमरीका,साउथ अमेरिका, राटरडैम, बुसान, सिएटल, कोलकाता, केरल,लंदन, बेल्जियम, फ्रांस, ईरान, जर्मनी यूरोप के हर इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में धूम मचा चुकी है. और अब यह फिल्म बेल्जियम के सिनेमाघरों में प्रदर्शित होने जा रही है.

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हाल ही में फिल्म विडो आफ साइलेंस’’ के लेखक, निर्माता व निर्देशक से जब हमने पूछा कि क्या उनकी फिल्म से पहले भी बेल्जियम में भारतीय फिल्मे रिलीज होती रही हैं? तो इस पर प्रवीण मोरछले ने कहा- ‘‘मुझे तो नहीं मालूम. पर मेरी फिल्म ‘विडो आफ सायलेंस’ बेल्जियम के दो इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में विजेता थी, इसे दो अवार्ड मिले थे. इसलिए वह हमारी फिल्म को लक्जमबर्ग,बेल्जियम और हालैंड इन 3 देशों के सिनेमाघरो में रिलीज कर रहे हैं. इसकी मुझे बहुत खुशी है. एक बहुत ही छोटी फिल्म बजट के हिसाब से बहुत ही सेंसिटिव सब्जेक्ट पर बहुत ही मानवीय फिल्म है. सच कहूं तो मुझे नहीं लगता कि मैं अपनी इस फिल्म को हिंदुस्तान में कभी सिनेमाघरो में प्रदर्शित कर पाऊंगा. कम से कम यूरोप में रिलीज हो रही है. यूरोप में कमर्शियल सिनेमा हौल में रिलीज होगी. यह अपने आप में मेरे लिए बहुत खुशी की बात है.

फिल्म ‘‘विडो आफ साइलेंस’’ की कहानी के केंद्र में कश्मीर की एक मुस्लिम हाफ विधवा आसिया (शिल्पी मारवाह) है, जिसका पति गायब हो गया है, खुद को, अपनी 11 वर्षीय बेटी और बीमार सास को संकट में पाती है, जब वह सरकार से अपने लापता पति का मृत्यु प्रमाण पत्र प्राप्त करने का प्रयास करती है. अब उसे एक अस्थिर और बेतुकी स्थिति से बाहर आने की ताकत तलाशनी होगी. इससे परिवार का जीवन एक विशाल उथल-पुथल में बदल जाता है.

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यह फिल्म एक ‘आधी-विधवा‘ के भविष्य की पड़ताल करती है. क्योंकि वह नौकरशाही के साथ अपने पति की अनुपस्थिति में तय की गई जिंदगी को सामान्य स्थिति लाने के लिए प्रेरित करती है.

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