नीना गुप्ता उन अभिनेत्रियों में से हैं, जिन्होंने बचपन में अभिनेत्री बनने की बात नहीं सोची थी. अतिमहत्वाकांक्षी नीना गुप्ता तो अपनी मां के सपने को पूरा करने के लिए आईएएस आफिसर बनना चाहती थीं. मगर फिलोसफी विषय के साथ मास्टर की डिग्री की पढ़ाई के दौरान उनका थिएटर से जुड़ना हुआ. जिसने उन्हें अभिनय को करियर बनाने के लिए उकसाया और वह दिल्ली से मुंबई पहुंच गयी थीं. उन्हें शुभशंकर घोष की फिल्म ‘‘छोकरी’’ के लिए ‘‘सर्वश्रेष्ठ सह अभिनेत्री’’ का राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिला. मगर करियर के शुरुआती दौर में उन्हें काफी संघर्ष करना पड़ा. उन्हें फिल्मों में छोटे किरदारों को निभाना स्वीकार करना पड़ा था. तो दूसरी तरफ उनकी निजी जिंदगी भी कई तरह की समस्याओं से घिरी हुई थी. पर वह विजेता बनकर उभरी. खुद नीना गुप्ता कहती हैं- ‘‘मेरे करियर के पहले पड़ाव में मुझे काफी संघर्ष करना पड़ा, पर मैंने उसे भी इंज्वाय किया था. मैंने खुद को शक्तिशाली बनाकर उन सारी समस्याओं का डटकर मुकाबला किया. मेरी सशक्त नारी की ईमेज ने ही बाद में मुझे अच्छे किरदार भी दिलाए.’’

इन दिनों आप एकदम अलग तरह की फिल्में कर रही हैं ?

मेरे लिए खुशी की बात है कि उम्र के इस पड़ाव पर मुझे विविधतापूर्ण किरदार निभाने के मौके मिल रहे हैं. जबकि बौलीवुड में यह आम धारणा है कि यह अभिनेत्री इस तरह के किरदार निभाती है, तो इसे वैसे ही किरदार दिए जाने चाहिए. यह सोच पूरी तरह से गलत है. अन्यथा पत्रकार के किरदार के लिए किसी पत्रकार को बुलाया जाना चाहिए, कलाकार को क्यों बुलाया जाता है? पर सिनेमा में आए बदलाव के बाद यह भ्रम लोगों का टूटा है और अब हमें विविधतापूर्ण किरदार मिल रहे हैं.

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