बॉलीवुड और हॉलीवुड में नाम कमा चुके अभिनेता इरफान खान को आज भी लीक से हटकर फिल्में करने का शौक है. वे एक ऐसे कलाकार हैं, जो किसी भी किरदार में अभिनय से जान डाल देते हैं. यही वजह है कि उन्होंने टीवी से लेकर फिल्में, जहां भी काम किया सफल रहे. हालांकि उनका शुरुआती जीवन संघर्ष से भरा था, लेकिन उन्हें अपने पर विश्वास था कि वे एक दिन कामयाब होंगे. शांत और गंभीर चित्त के इरफान की जिंदगी में उनकी पत्नी सुतपा सिकदार का बहुत बड़ा हाथ है, जिन्होंने हर समय हर काम में उनका साथ दिया है. इरफान का ‘हिंदी मीडियम’ फिल्म में काम करना भी उनके लिए चुनौती थी, क्योंकि इसमें दिखाए गए कुछ तथ्य उनके जीवन से काफी मेल खाते हैं. हिंदी भाषा और उससे जुड़े लोग आखिर अपने आप को कम क्यों समझते हैं? इस बारे में उन्होंने बातचीत की. पेश है अंश.
प्र. इस तरह के विषय पर काम कर सफल होने के बाद आप कितने खुश हैं? जबकि आज की पीढ़ी हिंदी में बातचीत करना और पढ़ना भूलती जा रही है?
ये एक ऐसा विषय है, जो सदियों से है और सदियों तक चलता रहेगा. मेरे हिसाब से अंग्रेजी आनी चाहिए, लेकिन अपनी राष्ट्र भाषा पर भी भरोसा होने की जरुरत है.
प्र. आप हिंदी भाषा के कितने करीब हैं?
बचपन से ही हिंदी के करीब रहा हूं. हालांकि पढ़ाई मैंने अंग्रेजी माध्यम से की है, लेकिन सोचता हिंदी में ही हूं. घर में माहौल हिंदी का ही था. हिंदी साहित्य मैंने पढ़ा है.
प्र. किस तरह के भेदभाव आप दैनिक जीवन में हिंदी को लेकर देखते हैं?
हमेशा ही देखता हूं कि हिंदी जानने वाले को कम और अंग्रेजी जानने वाले को बेहतर समझा जाता है. इसके अलावा अगर अंग्रेजी के किसी शब्द का उच्चारण हिंदी भाषी गलत करता है, तो अंग्रेजी के जानकार लोग उसे कौतूहल की दृष्टि से देखते हैं. दोहरी मानसिकता होती है. मैंने भी कई बार ऐसे हालात का सामना किया है. ये केवल हिंदी सिनेमा जगत में ही नहीं, हर जगह मौजूद है. यहां तो फिर भी हिंदी जानने वाले ही सारे कलाकार आज सुपर स्टार हैं. मेरे हिसाब से अंग्रेज देश छोड़कर चले गए हैं, पर अभी भी वे किसी न किसी रूप में राज कर रहे हैं. केवल भाषा ही नहीं, व्यवसाय से लेकर मीडिया, विकास के मोड्यूल, रहन-सहन आदि सब कुछ हम विदेश से ही लेते हैं.
प्र. आपके परिवार में हिंदी बोलचाल कितनी होती है, आपके बच्चे कितना हिंदी जानते हैं?
हिंदी हम पढ़ाते हैं और वैसा माहौल होता है. मैं हिंदी में बात भी करता हूं. हिंदी से वे अच्छी तरह परिचित हैं. ननिहाल जाते हैं तो बांग्ला भी बोल लेते हैं.
प्र. आपकी स्कूल लाइफ कैसी थी? कितना बदलाव अब आप अपने में महसूस करते हैं?
मेरी स्कूल लाइफ कैद खाने की तरह थी. सुबह 6 बजे से शाम 6 बजे तक चलती थी. घर पर खेलना, कूदना तो रह जाता था. मैं सोचता था कि कब मेरा इस स्कूल से पीछा छूटे. छात्र के रूप में मैं बहुत ही बेकार था. क्लास में पीछे सोता रहता था. मेरे साथियों को पता भी नही था कि मैं उनकी कक्षा में हूं. कक्षा में क्या होता था, मुझे कुछ पता नहीं चलता था. अंत के कुछ दिनों में पढ़कर किसी तरह पास हो जाता था. मैं शरारती नहीं, शाय नेचर का था. मुझे उस समय अंकगणित बहुत पसंद था. मैं अभी भी बहुत बदला नहीं हूं. अंदर से शर्मीले स्वभाव का हूं.
प्र. आप अपनी जर्नी को कैसे देखते हैं? क्या अभी कोई मलाल रह गया है?
मुझे जो भी काम अभिनय के क्षेत्र में मिला, करता गया. शुरुआत में काफी संघर्ष था, लेकिन मुझे अभिनय करना था, इसलिए धैर्य नहीं छोड़ा. धीरे-धीरे जो चाहा मिलता गया और आज यहां तक पहुंच चुका हूं. एक कलाकार कितना भी काम कर ले, कभी भी अपने काम से संतुष्ट नहीं रहता ,उसे हमेशा कुछ न कुछ अलग करते रहने की इच्छा रहती है.
प्र. हिंदी को आगे बढ़ाने की दिशा में आप क्या संदेश देना चाहते हैं?
हिंदी मीडियम के अच्छे स्कूल और वहां पढ़ाने वाले अध्यापकों की वेतन अधिक होनी चाहिए, ताकि अच्छे अध्यापक वहां आयें और बच्चों को शिक्षित करें. माता-पिता को भी ये भरोसा दिलाना चाहिए कि हिंदी मीडियम से भी पढ़कर बच्चा कुछ बनकर ही निकलेगा.
प्र. आगे की फिल्में कौन सी हैं?
अभी एक हॉलीवुड फिल्म करने वाला हूं. इसके अलावा एक बांगला फिल्म ‘डूब’ में मैंने फिल्म निर्देशक की भूमिका निभाई है. रिलेशनशिप पर आधरित इस कहानी को करने में मैंने बांग्ला भाषा को अच्छी तरह सीखा है. आगे कई हिंदी फिल्में भी कर रहा हूं.