कार्टून सीरियल/एनीमेशन  सीरियल ‘‘छोटा भीम’’ हो या ‘छोटा भीम’ फ्रेंचाइजी की फिल्में हो, ये सब राजीव चिलाका के दिमाग की ही उपज है. वही इसके क्रिएटिव डायरेक्टर व क्रिएटर हैं. पूर्व राष्ट्रपति व वैज्ञानिक स्व.अब्दुल कलाम आजाद के साथ काम कर चुके मशहूर वैज्ञानिक मधुसूदन राव के बेटे राजीव चिलाका के दिमाग में बचपन से ही  उनके पिता ने जो एनीमेशन का कीड़ा भरा था. उसी का परिणाम है कि राजीव चिलाका ने ‘मास्टर इन कम्प्यूटर साइंस’ की डिग्री लेने के बाद अमेरिका में एनीमेशन बनाना सीखा और फिर भारत आकर इस इंडस्ट्री को खड़ा करने का काम किया. ‘टर्नर’ चैनल पर एनीमेशन सीरियल ‘‘छोटा भीम’’ के सफल होने के कई वर्ष बाद 2012 में राजीव चिलाका ने पहली एनीमेशन फिल्म ‘छोटा भीम’ बनायी थीं. अब इस फ्रेंचाइजी की छठी फिल्म ‘‘छोटा भीमः कुंगफू धमाका’ लेकर आए हैं. दस मई को थिएटरों में पहुंची यह पहली भारतीय थ्री डी एनीमेशन फिल्म है.

‘‘छोटा भीम’’ सीरियल की सफलता ने आपकी उम्मीदों को पर लगा दिए?

मैं स्पष्ट कर दूं कि टीवी सीरियल के रूप में जब ‘छोटा भीम’ टीवी पर आया तो रातों रात कोई हंगामा नहीं हुआ. धीरे धीरे इसके दर्शक बढ़े थे. धीरे धीरे इसकी लोकप्रियता बढ़ी थी. पहले सिर्फ 13 एपीसोड ही आए थे, जब लोगों ने इसे पसंद किया, तो अगले 13 एपीसोड बने. फिर एक वक्त वह आया, जब हमें लगा कि ‘छोटा भीम’ तो बहुत लोकप्रिय हो गया है, हमें इस पर फिल्म बनानी चाहिए.तब 2012 में हमने इस पर फिल्म ‘‘छोटा भीम’’ बनायी थी. अब हम इस फ्रेंचाइजी की छठी फिल्म ‘‘छोटा भीम कुंगफू धमाका’’ लेकर आए हैं.

यह ऐसा कोई मूवमेंट नहीं था कि रातों रात हमें सफलता मिल गयी हो. हमने धीरे धीरे स्थायी मजबूत प्रगति की. सच कहूं तो हमें उम्मीद नही थी कि हमारे इस एनीमेशन सीरीज या फिल्म को लोग इतना पसंद करेंगे. अमूमन हमने देखा हैं कि एनीमेशन सीरियल शुरु होता है, 3 से 4 चार साल बाद बंद हो जाता है. पूरे विश्व में यदि हम देखें, तो बामुश्किल दस ऐसे एनीमेशन सीरियल मिलेंगे, जो दस साल से अधिक समय प्रसारित हुए होंगे. जिस सीरियल ने दस साल पार कर लिया, वह तो पूरी जिंदगी के लिए हो जाता है. अब हमें यकीन हैं कि हमारा भीम आजीवन चलेगा.

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फिल्म ‘छोटा भीम कुंगफू धमाका’’ थ्री डी फिल्म है. तो भीम को ‘ टू डी’ से ‘थ्री डी’ करते समय क्या बदलाव करने पड़े?

जब भीम ‘2 डी’ से ‘3 डी’ में आएगा,  तो कैसे इक्जक्यूट होगा? हमारे लिए यह सोचने का विषय था. ‘3 डी’ में यदि भीम किक मारेगा, तो धोती में कैसे मारेगा? काफी सोचने के बाद दिमाग में आया कि भीम के कौस्ट्यूम में बदलाव किया जाए. तो उसके कौस्ट्यूम को बदला. किक मारते समय उसके छोटे कद के पैर धोती में छिप जाते थे, तो थ्रीडी में उसका प्रभाव नहीं आ रहा था. तब हमने उसकी उम्र और उसके पैरों की लंबाई बढ़ायी. अब थ्री डी में भीम लड़ाई करते समय विश्वसनीय लगता है. मेरे हिसाब से हमारी पहली थ्री डी फिल्म‘ ‘छोटा भीम कुंगफू धमाका’’ बहुत सही समय पर सिनेमाघरों में आ रही है.

फिल्म का नाम ‘‘छोटा भीम कुंगफू धमाका’’ क्यों? क्या मार्शल आर्ट का मसला है?

आपने एकदम सही पकड़ा. हमें लगा कि ‘कुंगफू मार्शल आर्ट’ बच्चों को बहुत अच्छा लगता है, इसलिए हमने इस फिल्म को कुंगफू मार्शल आर्ट पर गढ़ा है. हमें लगा कि कुंगफू के साथ कुछ अच्छा सा नाम देना चाहिए. काफी सोचने के बाद हमें युनिवर्सल नाम मिला ‘धमाका’. इसलिए इसका नाम रखा ‘कुंगफू धमाका. ’हमारी फिल्म की कहानी में बच्चे कुंगफू टूर्नामेंट में हिस्सा लेने के लिए चीन जाते हैं, तो कहानी वहां से शुरु होती है.

फिल्म की कहानी क्या है?

कहानी में बच्चे कुंगफू टुर्नामेंट में हिस्सा लेने चाइना जाते हैं पर टूर्नामेंट खत्म होने से पहले ही चाइना की प्रिंसेस का अपहरण हो जाता है. पर तब तक भीम की पूरी टीम से उसकी दोस्ती हो चुकी होती है, इसलिए भीम की पूरी टीम उस प्रिंसेंस को बचाने के लिए चली जाती है. वह उस प्रिंसेस को छुड़ाकर लाते हैं. तो इसमें टूर्नामेंट खत्म होने की बजाए उस बच्ची की जान बचाने की जो यात्रा है, वह महत्वपूर्ण है.

इस फिल्म में एक्शन बहुत होगा?

इसमें एक्शन, इमोशन, कौमेडी और एंडवेचर्स भी है.

क्या एक्शन प्रधान फिल्म होने की वजह से आपने इसे थ्री डी में बनाना ज्यादा उपयुक्त समझा?

कुछ हद तक असली वजह तो दर्शकों को कुछ नया देने का प्रयास है. इन दिनों बच्चें होम थिएटर या मोबाइल या टीवी पर फिल्में देखते रहते हैं. उन्हें थिएटर तक लाने के लिए भी तो कुछ नया करने के हिसाब से इसे ‘थ्री डी’ में बनाया.

फिल्म ‘‘छोटा भीम कुंगफू धमाका’’ मनोरंजन के अलावा बच्चों को कोई सीख देगी?

इसमें हमने हर सीख बहुत साधारण तरीके से दी है. पहली सीख यह है कि हर बच्चे को अपने दोस्त के साथ हमेशा खड़े रहना चाहिए. दूसरी सीख है कि एकता में ही ताकत है. हम एकजुट होकर हर संकट का मुकाबला कर सफलता पूर्वक जीत हासिल कर सकते हैं. तीसरी सीख है कि आपको हमेशा अपनी फ्रेंडशिप के लिए लड़ना चाहिए. चौथी सीख है कि कामयाबी के लिए कोशिश करना बहुत जरूरी है. जब तक आप प्रयास नहीं करेंगे, एक कदम आगे नहीं बढाएंगे, तब तक कामयाबी कैसे मिलेगी. हमारी फिल्म हर बच्चे से यही कहती है कि आप कोशिश करो, सफलता मिलेगी. यूं कहें कि कोशिश ही कामयाबी की पहली सीढ़ी है.

फिल्म में कितने गाने हैं?

फिल्म में तीन गाने हैं. एक गाना ‘दलेर मेंहदी’ ने गाया हैं जो कि बौलीवुड स्टाइल का है. इसे हमने फिल्म के अंत में रखा है. दूसरे  गाने को सुनिधि चैहान ने गाया हैं. तीसरे गाने को एनेमेटेड करेक्टर के साथ दलेर मेंहदी ने गाया है. ऐसा प्रयोग पहली बार हमने भारत में किया है.

कार्टून फिल्मों के लिए भी इमोशन जरूरी होते हैं, उसके लिए क्या करते हैं?

देखिए, कहानी में इमोशन पर कहानी लिखते समय से ही काम शुरू हो जाता है. स्क्रिप्ट के समय भी उसमें इमोशन डालने होते हैं. फिर एनीमेशन यानीकि विज्युलाइज करते समय इमोशन डाल देते हैं.जब हम कोई किरदार विकसित करते हैं या उसका एनीमेशन तैयार करते हैं, तो हम यह देखते हैं कि हम उसके साथ जुड़ रहे हैं या नहीं. यदि परदे पर भीम हार रहा है, तो दर्शकों को लगना चाहिए कि क्यों जीत रहा है और हार रहा है, तो भी लगना चाहिए क्यों हार रहा है. इन सारे इमोशन के साथ बच्चों का जुड़ाव जरूरी है. तभी वह एनीमेशन वास्तविक होती है. आखिरकार हमारे किरदार तो मानवीय होते हैं. वह गिरेंगे, तो उन्हें दर्द होगा. यह सब हमारे एनेमेटेड किरदार में रखते हैं. हमारे किरादारों की एक यात्रा होती है. हमारा भीम हर बार जीतता ही नही है, कई बार हारता भी है. इसके अलावा यदि भीम ने लड़ाई लड़ी और जीत गया, तो उसके दोस्तों का क्या होगा? किसी ने भीम को मारा, तो उसके दोस्तों का रिएक्शन क्या होगा? यह सब कुछ आपको बहुत नैच्युरल नजर आएगा.

एनीमेशन फिल्म में संगीत की कितनी उपयोगिता है?

बहुत ज्यादा जरूरी है. एनीमेशन फिल्मों में संगीत के माध्यम से ही हम इमोशन पैदा करते हैं. जो फीलिंग मिसिंग होती है, वह भीसंगीत से उभर कर आ जाती है. फिर डबिंग आर्टिस्ट इन किरदारों को अपनी आवाज देकर खुशी, गम आदि के इमोशन भरते हैं.

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आपका दावा है कि आपने काफी रिसर्च किया. पर रिसर्च के दौरान आपने बच्चों से बात की?

बच्चों से बातचीत के बिना रिसर्च अधूरा रहता. हमारी लंबी चौड़ी टीम ने रिसर्च किया. मैंने अपने स्तर पर किया. मैं आपको एक वाकया बताता हूं. मैंने ‘छोटा भीम’ का एक एपीसोड बनाया और अपनी कौलोनी के सारे बच्चों को इकट्ठा करके दिखाया. मैंने देखा कि सारे लड़के बहुत खुश थे कि भीम ने क्या कमाल किया है. पर लड़कियां नाराज थीं. उनमें मेरी भतीजी भी थी. मैंने अपनी भतीजी से पूछा क्या माजरा है? तो पता चला कि लड़कियों को यह नागवार लगा कि सब कुछ भीम कर रहा है,छुटकी नहीं. मेरी भतीजी ने कहा, ‘आपने यह कैसे सोच लिया कि छुटकी भीम से कमजोर है? क्या मैं किसी लड़के से कम हूं?’ तो मुझे अपनी गलती का एहसास हुआ. फिर मैने सभी लड़कियों से राय ली. एक ने कहा कि छुटकी को लड़कों के साथ खेलना चाहिए. दूसरी ने कहा कि छुटकी को कालिया को पीटना चाहिए. एक ने कहा कि छुटकी को स्किीपिंग करना चाहिए. एक ने कहा कि भीम ताकत लगाए, सब कुछ करें, लेकिन आइडिया छुटकी की होनी चाहिए. मैंने इन सारी बातों को दिमाग में रखा और धीरे धीरे इन सारी बातों को ‘छोटा भीम’ के अगले एपहसोड में पिरोया. अब छोटा भीम सीरियल हो या फिल्म भीम के बाद छुटकी ही सबसे बड़ा और महत्वपूर्ण किरदार है. भीम की ही तरह छुटकी भी बच्चों में लोकप्रिय है.

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