सिनेमा में बदलाव की बहुत बातें हो रही हैं. मगर आज भी बौलीवुड में बुजुर्ग महिला कलाकारों के लिए किरदार नहीं लिखे जा रहे हैं. इतना ही नही अब तो फिल्मों से परिवार भी गायब हो गए हैं. मगर 19 अक्टूबर को प्रदर्शित हो रही ‘जंगली पिक्चर्स’ और ‘क्रोम पिक्चर्स’ निर्मित तथा अमित रवींद्रनाथ शर्मा निर्देशित फिल्म ‘‘बधाई हो’’ में दादी के साथ ही पूरा परिवार व रिश्ते मौजूद है. जबकि यह फिल्म अधेड़ उम्र में युवा व टीनएजर बेटे की मौजूदगी में तीसरी बार मां बनने पर समाज द्वारा कसे जाने वाले तानों के इर्द गिर्द घूमती है. इस फिल्म में दादी की भूमिका में सुरेखा सीकरी है, जिन्होने आठ साल तक टीवी पर प्रसारित सीरियल ‘‘बालिका वधू’’ में दबंग व परंपरागत दादी के किरदार में नजर आती रही हैं.

आप जैसी लोकप्रिय अभिनेत्री को भी फिल्मों में काम करने के कम अवसर मिल रहे हैं?

फिल्म और फिल्म की पटकथा से वर्तमान समाज का संकेत मिलता है. समाज पुरूष प्रधान है, इसलिए फिल्मों में भी पुरूष प्रधान किरदार ही अहमियत रखते हैं. परिणामतः बुजुर्ग महिला कलाकारों के लिए किरदार ही नहीं लिखे जाते. जबकि ऐसा नही होना चाहिए. तीन वर्ष पहले तक फिल्मों में हमारी उम्र की महिलाओं के किरदार में महज फर्नीचर होते थे. दादी के किरदार भी स्टीरियो टाइप होते थे. किरदारो में कोई रोचकता नही होती थी. जबकि मैने हमेशा अच्छे किरदारों को अहमियत दी. पर अब हालात बदल रहे हैं. अब फिल्मों में महिला किरदारों को अहमियत दी जा रही है. इसी बदलाव के चलते फिल्म ‘‘बधाई हो’’ में मुझे दादी के अहम किरदार को निभाने का अवसर मिला. यह किरदार महज शो पीस नही है.

फिल्म ‘‘बधाई हो’’ क्या है?

फिल्म ‘‘बधाई हो’’ में उस मुद्दे पर बात की गयी, जिसे समाज धब्बा समझता है. पर फिल्म मनोरंजक है. इसमें अधेड़ उम्र में एक औरत के मां बनने पर पारिवारिक रिश्तेदारों व समाज द्वारा कसे जाने वाले ताना का चित्रण है. यह फिल्म कहती है कि बड़ी उम्र के दंपति में प्यार होना अच्छी बात है.

आप बड़ी उम्र में मां बनने को किस तरह से देखती हैं?

मेरी राय में यदि 40 और 50 साल की उम्र पार कर चुके दंपति के दिल में कवि हृदय है,तो बहुत अच्छी बात है. मैं तो कवि हृदय की तारीफ करती हूं. यह तो अच्छी बात है. मुझे इसमें कोई बुराई नजर नहीं आती.

आपके अनुसार बदले हुए वक्त में किन विषयों पर फिल्में बननी चाहिए?

मानवीय मूल्यों को रेखांकित करने वाले विषयों पर फिल्में व सीरियल बनने चाहिए. मै महसूस करती हूं कि वर्तमान समय में लोग सेल्फिश होते जा रहे हैं. अब यह उनकी मजबूरी है या जिंदगी जीना इतना मुश्किल हो गया है कि उनके अंदर हमदर्दी कम हो गयी है. इसलिए इस वक्त ऐसी फिल्मों का बनना आवश्यक है, जिससे लोग मानवता के प्रति जागरूक हो और लोग अमानवीय न हो. अफसोस की दुनिया में हर इंसान अमानवीय होता जा रहा है. इन दिनों इतनी समस्याओं से इंसान जूझ रहा है कि वह सिर्फ अपने बारे में सोचने लगा है और फिर दूसरे के प्रति हमदर्दी खत्म हो जाती है.

नीना गुप्ता व गजराज राव के साथ आपके कैसे इक्वेशन रहे?

इनके साथ काम करके मुझे बडा मजा आया. देखिए,प्रोफेशनल कलाकारों के साथ काम करने का तो अपना ही मजा होता है. फिर नीना गुप्ता और गजराज राव संस्कारी लोग हैं. इन्होंने सेट पर मुझे बड़ी इज्जत दी. निर्देशक अमित शर्मा भी बेहतरीन और सुलझे हुए हैं.

पिछली बार आपने बताया था कि आपको लिखना अच्छा लगता है. तो कुछ नया लिख रही हैं?

हां! मुझे लिखना अच्छा लगता है. पर मैंने कभी फिल्म स्क्रिप्ट लिखने के बारे में सोचा नहीं. मैं कविताएं लिखती रहती हूं. कभी कभी मुझे कोई स्क्रिप्ट मिल जाती है, तो उन्हें मैं थोड़ा सा अपने हिसाब से बदल लेती हूं. बहुत ज्यादा नही. अपने हिसाब से मोड़ लेती हूं. मगर मुझे शब्दों के साथ खेलना अच्छा लगता है.

आपके लिए अभिनय क्या है?

अभिनय मेरा पैशन है. अभिनय के लिए उम्र का कोई बंधन नहीं होता. मेने सीखा है कि अभिनय में श्रृद्धा और अनुशासन बहुत जरुरी है. मैने अपने जीवन व करियर में इसी को अपनाया है. सीखने का क्रम तो अभी भी जारी है.

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