रेटिंग: एक स्टार
निर्माता: जयंतीलाल गाड़ा, मधुर भंडारकर व प्रणव जैन
निर्देशकः मधुर भंडारकर
कलाकारः प्रतीक बब्बर,साई ताम्हणकर,श्वेता बसु प्रसाद, अहाना कुमरा,प्रकाश बेलावडी,पंकज झा, आयशा एम एमन व अन्य.
ओटीटी प्लेटफार्मः जी 5
अवधि: एक घंटा पचास मिनट
‘चांदनी बार’,‘सत्ता’,‘पेज 3’,‘कारपोरेट’,‘फैशन’,‘हीरोईन’,‘कलेंडर गर्ल’,‘इंदू सरकार’ व ‘बबली बाउंसर’ जैसी फिल्मों के फिल्मकार मधुर भंडारकर की अपनी एक अलग पहचान रही है. उनकी फिल्में लोगों के दिलों तक पहुॅचती रही हैं. मगर‘इंदू सरकार’ व ‘बबली बाउंसर’ में उनकी पकड़ ढीली पड़ गयी थी. बहरहाल,अब वह कोरोना महामारी के चलते लगे लाॅक डाउन के दौरान घटी सत्य घटनाक्रमों पर फिल्म ‘‘इंडिया लाॅकडाउन’’ लेकर आए हैं,जो कि दो दिसंबर से ओटीटी प्लेटफार्म ‘जी 5’ पर स्ट्ीम हो रही है. इस फिल्म में सेक्स का तड़का भरा हुआ है,मगर कहानी गायब है. फिल्म में दृश्य है,मगर आत्मा नही है. वास्तव में दर्शकों को अंदर से झकझोर कर रख देने वाली कहानी उनके पास नही है.
कहानीः
यूं तो फिल्म में चार कहानियां समांनांतर चलती हैं. एक कहानी मंुबई में मजदूरी करने वाले बिहारी युवक माधव (प्रतीक बब्बर) की है,जो कि अपनी फूलमती पत्नी (साई ताम्हणकर) व छोटी बच्ची के साथ किराए की खोली में रहता है. कोरोना महामारी फैलने से पहले से ही वह आर्थिक तंगी से जूझ रहा है. लाॅक डाउन लगने पर खोली का मालिक किराया देने के लिए धमका रहा है तो वह कुछ लोगों के साथ झंुड में बिहार अपने गांव की तरफ परिवार के साथ पैदल निकल पड़ता है. रास्तें में उनके झंुड का ही एक साथी फूलमती के साथ छेड़छाड़ भी करता है.
दूसरी कहानी कमाठीपुरा की सेक्स वर्करों की है. इसमें से मेहरुनिसा कुछ ज्यादा ही तेज है. उसकी मां गांव में रहती है. मेहरुनिसा (श्वेता बसु प्रसाद) ने अपनी मां को बताया है कि वह मंुबई में एक अस्पताल में नर्स है. कोरोना महामारी और लाॅकडाउन के चलते फोन सेक्स से लेकर नेताओं के चमचों द्वारा एम्बूलेंस मंे ही सेक्स करने से लेकर कई घटनाक्रम हैं.
तीसरी कहानी एक युवा प्रेमी जोड़े की है. पायल अपने साथ पढ़ने वाले लड़के देव के प्रेम में डूबी है. दोनों वर्जिन हैं और वर्जिनिटी को खत्म करने के लिए उन्हे सुरक्षित व एकांत जगह की तलाश है. देव के चाचा एक सप्ताह के लिए शिमला जाने वाले हैं. तब देव को चाचा के घर में ही रहना है. अब पायल व देव को उस दिन का इंतजार है,जब देव के चाचा षिमला जाए. देव के चाचा शिमला के लिए रवाना होेते हैं,और इधर लाॅक डाउन लग जाता है. देव व पायल नही मिल पाते. मगर देव की दोस्ती उसी इमारत में रहने वाली एअर होस्टेस मून एल्वेस (अहाना कुमारा) से हो जाती है. पर एक दिन पायल व देव अपनी वर्जीनिटी को तोड़ने में सफल हो जाते हैं.
चौथी कहानी एम नागेश्वर राव (प्रकाश बेलेवाड़ी) की है. जो मंुबई में अकेले ही रहते हैं. पत्नी का देहांत चुका है. उनकी बेटी हैदराबाद मंे है और वह मां बनने वाली है. इसलिए नागेश्वर राव ने हैदराबाद जाने के लिए प्लेन की टिकट निकाल रखी है. पर लाॅकडाउन की वजह से हवाई यात्रा भी बंद हो जाती है. तब एम नोगष्वर राव जुगाड़ लगाकर परमिट हासिल कर सड़क मार्ग से ख्ुाद ही कार चलाते हुए हैदराबाद के लिए रवाना होते हैं और रास्ते में उनके साथ हादसा होता है. अंत में चारों कहानियों का सुखद अंत होता है.
लेखन व निर्देशनः
फिल्म की कहानी व पटकथा काफी कमजोर और विखरी विखरी सी है. कोरोना के चलते लगे लाॅकडाउन के वक्त की कई रोचक किस्से हैं. लोगों की जिंदगी में बहुत कुछ घटा. मगर फिल्म निर्देशक मधुर भ्ंाडारकर को हर तरफ केवल ‘सेक्स’ की भूख ही नजर आयी. उन्होने अपनी फिल्म में जिस तरह से सेक्स परोसा है,उससे उन्होने लाॅक डाउन के दिनों के जख्मों पर नमक छिड़कने जैसा काम ही किया है.
मधुर भंडारकर ने लाॅक डाउन के दौरान जिस तरह से आम इंसानों को मेडिकल सेवाओं, अस्पताल में बेड न मिलने,जरुरत की चीजों के दाम अचानक आसमान पर पहुॅचने सहित कई समस्याओं की अनदेखी की है. वास्तव में मधुर भंडारकर आज भी बीस वर्ष पहले वाली सोच के साथ ही जी रहे हैं.
तभी तो उनके जैसा संवेदनषील फिल्म सर्जक अपनी फिल्म में कोठे पर ब्लैकमेलिंग का षिकार हो रही मेहरूनिषा सागर किनारे पलक व देव को चंुबन करते देख कहती है-‘‘जो काम हम पैसा लेकर करते हैं,दूसरी युवतियां उसे मुफ्त में क्यों करने देती हैं. तब साथ वाली दूसरी सेक्स वर्कर उसे समझाते हुए कहती है कि वह पैसा नहीं मगर इसके बदले बहुत कुछ पाती हैं. स्त्री पुरूष संबंधों पर इस तरह की छिछांरीटिप्पणी कम से कम मधुर भ्ंाडारकर जैसे संवेदनशील फिल्मकार को शोभा नहीं देती.
फिल्म के निर्देशक मधुर भ्ंाडारकर और लेखक द्वय अमित जोशी व अराधना सहा को भारत की भौगोलिक जानकारी भी नही है. तभी तो मंुबई से बिहार के पैदल निकले मजदूर और मंुबई से हैदराबाद निकले धनी कार वाल इंसान आधे रास्ते पर मिल जाते हैं. शायद मध्ुार भंडारकर की नजरों में मंुबई ही इंडिया है.
अच्छा है कि ‘इंडिया लाॅकडाउन’ ओटीटी प्लेटफार्म ‘जी 5’ पर स्ट्ीम हो रही है. क्योंकि सिनेमाघरों में इस फिल्म को देखने के लिए दर्शक अपनी गाढ़ी कमायी बर्बाद करने से बचता और तब आनंद एल राय की तरह मध्ुार भ्ंाडारकर भी अपनी गलती को स्वीकार करने की बजाय यही कहते कि ‘दर्शक बेवजह बाॅलीवुड से नाराज है. ’’
अभिनयः
बिहारी मजदूर माधव के किरदार में प्रतीक बब्बर पूरी तरह से न्याय नही कर पाए. वह बिहारी लहजे को सही ढंग से पकड़ नही पाए. फूलमती के किरदार में साई ताम्हणकर के हिस्से केवल संुदर दिखना ही आया. इस तरह मध्ुार भ्ंाडारकर ने एके बेहतरीन प्रतिभाशाली कलाकार साई ताम्हणकर को जाया ही किया है. एम नागेश्वर राव के किरदार को अपने अभिनय से जीवंतता प्रदान करने में प्रकाश बेलवाड़ी पूरी तरह से सफल रहे हैं. एअर होस्टेस मून एल्वेस के किरदार मंेे अहना कुमरा याद रह जाती हैं. सेक्स वर्कर मेहरूनिसां के किरदार में श्वेता बसु प्रसाद का चिलबुलापन याद रह जाता है.