शबाना आजमी बौलीवुड का एक जाना माना नाम हैं, जो पिछले चार दशक से बौलीवुड में बतौर एक्ट्रेस सक्रिय हैं. उनका जन्म 18 सितंबर 1950 को हुआ था. शबाना ने अपनी अदाकारी की शुरुआत थिएटर से की थी. गर्ल्स स्कूल में शबाना को उनकी पर्सनैलिटी देखते हुए लड़कों के रोल दिए जाते थे. उन्होंने अपने कौलेज के सीनियर फारुख शेख के साथ मिलकर मुंबई के सेंट जेवियर कौलेज में हिन्दी नाट्य मंच बनाया था. इसके लिए उन्हें कौलेज से पैसा नहीं मिलता था. वे और उनके साथी खुद ही इसका खर्च उठाते थे.
जब इस नाट्य मंच को हर साल अवौर्ड्स मिलने लगे तो शबाना अपने कौलेज प्रशासन के पास गईं और उन्होंने अंग्रेजी थिएटर ग्रुप की तरह ही कौलेज से आथिर्क मदद दिए जाने की मांग की. लेकिन उन्हें सिर्फ दस रुपए मिले. शबाना ये देखकर नाराज हो गईं और उन्होंने इसे वापस करते हुए कहा कि आप ये हमारी तरफ से डोनेशन समझकर रख लीजिए.
इसी दौरान शबाना ने फिल्म एंड टेलीविजन इंस्टीट्यूट औफ इंडिया की कुछ डिप्लोमा फिल्म देखीं. वे जया बच्चन की फिल्म सुमन देखकर देखकर बेहद प्रभावित हुईं. उन्होंने कहा कि इससे पहले उन्होंने कभी इतनी बेहतरीन एक्टिंग नहीं देखी. इसके बाद शबाना ने तय कर लिया कि वे एक्ट्रेस बनेंगी.
शबाना ने एक्ट्रेस बनने के अपने सपने को पूरा करने के लिए एफटीआईआई पुणे जाने का तय किया. जब उन्होंने अपना ये फैसला अपने अब्बा को बताया तो उनके अब्बा ने कहा, ‘आप अगर मोची भी बनना चाहें तो भी मुझे उसमें कोई ऐतराज नहीं लेकिन आप वादा करें कि आप सबसे बेहतरीन मोची बनकर दिखाएंगी.
इसके बाद शबाना को जल्द ही एफटीआईआई से बेस्ट स्टूडेंट की स्कौलरशिप मिल गई. शबाना ने स्टूडेंट रहते ही दो फिल्में साइन कर ली थीं. इनमें एक थी ख्वाजा अहमद अब्बास की फिल्म फासला और दूसरी फिल्म कांतिलाल राठौर की परिणय. कोर्स खत्म होते ही उन्होंने इसकी शूटिंग शुरू कर दी थी.
शबाना आजमी ने 1984 में जावेद अख्तर से शादी की थी. जावेद की ये दूसरी शादी थी. दरअसल जावेद शबाना के अब्बा से मिलने उनके घर आते थे. इसी दौरान उनकी दोस्ती शबाना से हुई. धीरे धीरे ये दोस्ती प्यार में बदली. 1984 में जावेद ने अपनी पत्नी से शबाना के लिए तलाक ले लिया और शबाना से शादी कर ली.
शबाना आजमी जब फिल्मों में आई थीं तब उन्हें डांस नहीं आता था. वे डांस करने से बेहद इतराती थीं. इसलिए वे बेहद चुनिंदा फिल्मों में ही डांस करती नजर आई हैं.
शबाना आजमी ने लगातार तीन साल नेशनल फिल्म अवौर्ड जीता था. उन्हें 1983 से 1985 तक फिल्म अर्थ, कंधार और पार के लिए यह सम्मान मिला. इसके बाद उन्हें फिल्म गौडमदर के लिए 1999 में नेशनल अवौर्ड भी मिल चुका है.