Film Story : आज फिल्में अपने उद्देश्य कि, कला हमेशा से भावनाओं, जिंदगी, दर्शन और साहित्य को अभिव्यक्त करने का एक माध्यम होती हैं, को छोड़ चुकी हैं. फिल्मकार, लेखक, निर्देशक व कलाकार गुरुदत्त इस में अपवाद रहे हैं. ‘प्यासा’, ‘कागज के फूल’ और ‘साहिब बीबी और गुलाम’ के सर्जक गुरुदत्त ने इंसानों को एहसास कराने वाला अस्तित्ववादी सिनेमा व अवसादपूर्ण सिनेमा ही रचा. एक आकर्षक फिल्म निर्माता के रूप में गुरुदत्त की फिल्में मानवीय पीड़ा, कष्ट, जीवन और दर्शन का चित्रण करती हैं. वे ऐसे विरले कलाकार थे जिन की फिल्में व्यक्तिगत व्यक्तिपरक प्रभावों से प्रभावित होती थीं. उन्होंने अंतर्निहित मानवीय मूल्यों वाली फिल्में बनाईं और निर्देशित कीं और उन्हें घटनाओं के माध्यम से स्पष्ट रूप से चित्रित किया.
इतना ही नहीं, जब दूसरे तमाम फिल्मकार नईनई मिली आजादी के आशावाद से प्रेरित हो कर सिनेमा गढ़ रहे थे तब भी गुरुदत्त ने मानवीय भावनाओं, संवेदनाओं, वर्गभेद, स्त्री की आतंरिक लालसा, पीड़ा, परित्याग और सफलता की कीमत को गहराई से अपनी फिल्मों में पेश किया. जिंदगी, हकीकत, अस्तित्व, दर्शन और कला व जिंदगी के रिश्तों को ले कर गुरुदत्त ने उस वक्त फिल्में बनाईं जब जिंदगी पर आधारित फिल्में बनाने की हिम्मत बहुत कम फिल्मकार करते थे.
गुरुदत्त ने अपनी फिल्मों में कलाकार के एकाकीपन, भौतिकवादी समाज की कठोरता और मानवता की भावनात्मक भेद्यता को गहराई से चित्रित किया. उन की प्रतिभा न केवल उन के द्वारा बनाई गई फिल्मों में बल्कि सिनेमा को एक गहन काव्यात्मक और भावनात्मक रूप से प्रभावशाली कला रूप में उभारने की उन की क्षमता में भी स्पष्ट है. उन की फिल्मों के संवाद और फिल्मों के गीत गुनगुनाते हुए लोग हमें आज भी मिल जाते हैं. उन के निधन के 60 वर्ष पूरे हो चुके हैं. हम 1924 में जन्मे गुरुदत्त की जन्म शताब्दी मना रहे हैं.
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