छोड़ न यार, क्या रखा है वार में. भारतपाक सीमा पर हालात वार जैसे हों और दोनों साइडों के सैनिक एकदूसरे से माइक पर अंत्याक्षरी खेल रहे हों तो कोई भी इस सोच में पड़ जाएगा कि यह वार फील्ड है या स्टेज पर हो रहा कोई जलसा. सही समझे आप, इस फिल्म में वार की निरर्थकता को बताते हुए दोनों मुल्कों के बीच आपसी प्यार और भाईचारे की बात कही गई है जबकि भारत और पाकिस्तान को आपस में लड़वाने वाले देश चीन की पोलपट्टी खोली गई है. लेकिन इन सब बातों को गंभीरता से न कह कर मजाकिया स्टाइल में कहा गया है.

वार फील्ड पर बौलीवुड में पहले भी कुछ फिल्में बनी हैं. उन में जेपी दत्ता की ‘बौर्डर’ लाजवाब फिल्म थी. लेकिन इस फिल्म में लगता है, निर्देशक ने पूरा होमवर्क नहीं किया और जल्दबाजी में फिल्म पूरी कर ली.

फिल्म की कहानी राजस्थान से सटी भारतपाक सीमा से शुरू होती है. एक तरफ भारतीय कैप्टन राज वीर सिंह राणा (शरमन जोशी) है तो दूसरी तरफ पाकिस्तानी कैप्टन कुरैशी (जावेद जाफरी) है, जो अपनीअपनी बटालियन के साथ सीमा पर तैनात हैं. एक न्यूज चैनल की रिपोर्टर रुत दत्ता (सोहा अली खान) अपने कैमरामैन के साथ कवरेज के लिए वहां आती है. वहां उसे पता चलता है कि पाकिस्तानी जनरल (दिलीप ताहिल) 2 दिनों के बाद युद्ध का ऐलान कर सकते हैं लेकिन उसे पता चलता है कि वहां युद्ध के हालात कतई नहीं हैं. दोनों साइडों के सैनिकों के बीच मजाक चलता रहता है. माइक पर वे अंत्याक्षरी खेलते हैं. वह अपने टीवी चैनल पर दोस्ती का मैसेज देने लगती है. उधर, पाकिस्तानी जनरल चीन को खुश करने के लिए भारत पर परमाणु बम से हमला कराने के लिए तैयार हो जाता है.  रुत अपने चैनल पर चीन की पोल खोल पाने में कामयाब हो जाती है. दोनों देशों की जनता वार के खिलाफ है. पाकिस्तान को भी परमाणु बम को रोक देना पड़ता है. दोनों देश चीन में बने साजोसामान का बायकाट करते हैं.

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