अक्षय कुमार ने इस फिल्म में कई जगह कहा है, ‘बौस इज औलवेज राइट’. लेकिन फिल्म देखने पर लगा, ही इज नौट राइट. फिल्म में वह बारबार पानी निकालने की बात भी कहता है जबकि फिल्म में उस ने फिल्म की कहानी का ही पानी सुखा दिया है. कहानी में ऐक्शन की इतनी ज्यादा डोज है कि मुंह से सीसी की आवाज निकलने लगती है और दिमाग कुंद सा होने लगता है.
फिल्म में जब तक सबकुछ बैलेंस न हो तो वह मजा नहीं देती. ‘बौस’ में ऐक्शन, कौमेडी, ड्रामा सबकुछ है परंतु बैलेंस्ड नहीं है. पानी निकालने के चक्कर में सबकुछ घालमेल हो गया है. इमोशंस पर ऐक्शन हावी हो गया है. फिल्म टुकड़ोंटुकड़ों में तो कुछ ठीक लगती है लेकिन औन द होल देखा जाए तो बासी सब्जी में ऐक्शन का जबरदस्ती न छौंक दिया गया है.
अक्षय कुमार का मानना है कि आजकल पब्लिक बहुत स्मार्ट हो गई है जबकि ‘बौस’ में उस ने घिसेपिटे लटकेझटके ही दिखाए हैं. इस तरह की ऐक्शन कौमेडी दर्शक उस की खिलाड़ी सीरीज की फिल्मों और ‘राउडी राठौड़’ में देख चुके हैं. इसलिए बौस, इस ‘बौस’ को देखना ही है तो दिमाग को घर पर रख कर जाना.
मलयालम फिल्म ‘पोकरी राजा’ पर आधारित इस फिल्म की कहानी पर ज्यादा दिमाग लगाने की जरूरत नहीं है. बौस (अक्षय कुमार) को बचपन में उस के पिता सत्यकांत शास्त्री (मिथुन चक्रवर्ती) ने घर से निकाल दिया था. बौस को पनाह दी बिगबौस (डैनी) ने. सत्यकांत का एक और बेटा है शिव (शिव पंडित) जिसे एसीपी आयुष्मान (रोनित राय) की बहन अंकिता (अदिति राव हैदरी) से प्यार हो जाता है. गृहमंत्री प्रधान (गोविंद नामदेव) प्रधान अंकिता की शादी अपने बेटे से कराना चाहता है, इसीलिए वह एसीपी के जरिए बौस के भाई शिव को अरैस्ट कर उस पर जुल्म करता है. एसीपी शिव को जान से मारना चाहता है. उधर सत्यकांत बौस के पास अपने छोटे बेटे शिव की जान बचाने के लिए आता है. अब शुरू होता है बौस और आयुष्मान के बीच चूहेबिल्ली का खेल. कुरुक्षेत्र के मैदान में दोनों का युद्ध होता है और बौस एसीपी आयुष्मान को खत्म कर डालता है.
फिल्म के क्लाइमैक्स में कुरुक्षेत्र में हुई यह लड़ाई महाभारत के मिथक के साथ मजाक करती प्रतीत होती है. फिल्म की पूरी कहानी घिसीपिटी है जिसे तेज गति दे कर और ऐक्शन सीनों के सहारे ही लंबा खींचा गया है.
अक्षय कुमार ने फाइटिंग कर कुछ तालियां जरूर बटोरी हैं लेकिन ‘पानी’ निकालने वाला द्विअर्थी डायलौग बोल कर ठीक नहीं किया. फिल्म का फर्स्ट हाफ कुछ ठीक है. अक्षय कुमार को हरियाणवी गुंडे का लुक दिया गया है जिस के पास बहुत से ट्रक हैं. एक खुले मैदान में पचासों ट्रक खड़े कर के उन पर छलांगें लगा कर अक्षय कुमार का जौगिंग करना रोमांचक बन पड़ा है. रोनित राय का काम भी अच्छा है. मिथुन के करने लायक फिल्म में कुछ ज्यादा नहीं है.
फिल्म का गीतसंगीत पक्ष अच्छा है. फिल्म में एक गाने के बोल हैं, ‘हम न छोड़ें, तोड़ें, फोड़ें जो भी हम से पंगा ले…’ को जोश में गाया गया है. एक अन्य पार्टी सौंग में सोनाक्षी सिन्हा की अपीयरैंस अच्छी लगती है. फिल्म के अंत में सोनाक्षी सिन्हा के साथ ही ‘जांबाज’ फिल्म का गाना ‘हर किसी को नहीं मिलता प्यार जिंदगी में…’ डाला गया है. यह गाना भी अच्छा बन पड़ा है.